खोने के बाद क्या मिलता है? जीवन के अनुभवों से सीखें || दिलायरी : 08/10/2025

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खोने के बाद क्या मिलता है? — जीवन की सबसे गहरी सीख

    प्रियम्वदा !

    खोने के बाद क्या मिलता है? यूँ तो कभी गौर किया नहीं मैंने.. लेकिन एक तरह से देखते है, तो हर खोना, कुछ पाने की प्रस्तावना होता है। आदान-प्रदान पर ही सब कुछ निर्भर है। न जाने कब से ही कहा जा रहा होगा, एक हाथ दे, एक हाथ ले..! बस वहीँ से कुछ खोकर कुछ पाया जाता है। श्रम देते है, तो पृथ्वी धान देती है। फ्री में शायद कुछ भी नहीं है.. या अभी मुझे कुछ भी याद नहीं आ रहा है, जो हमें फ्री में मिला हो..!


“खोने के बाद क्या मिलता है — आत्मबोध, विरक्ति और जीवन की शांति दर्शाता एक शांत पुरुष, चाँदनी में बैठा चिंतन करता हुआ।”

    आज खाली दिन था, तबियत थोड़ी नादुरस्त लेकिन कामचलाऊ रही। कल रात्रि को शरदपूर्णिमा थी, गरबा का आयोजन था, तथा दूध-पोहे..! लेकिन मैं नहीं गया था। भारी नींद ने घेर रखा था। लगभग दस बजे सो ही गया था। वह भी फोन को साइलेंट करके। मुझे याद नहीं है, आखरी बार मैंने अपना फोन कब साइलेंट किया होगा। रात को कईं दोस्तों के फोन आते रहे थे, जो मैंने आज सुबह देखे थे। नवरात्रि की ही तरह शरद पूर्णिमा को भी गरबा खेला जाता है। 


    इस बार कैलेंडर में दो शरदपूर्णिमा थी। कुछ लोगो ने छह तारीख को मनाई, कुछ ने सात को। हमारे यहाँ सात को थी। फर्क इतना होता है, कि शरद पूर्णिमा को बस माताजी की गरबी नहीं होती केंद्र में। गरबा और रास तो वही परंपरागत खेला जाता है। खासियत यह है, कि रात आठ-नौ बजे से एक बड़े से पतीले में दूध में पोहा तथा ड्राई-फ्रूट्स मिलाकर, छत पर चन्द्रमा के प्रकाश में रख देते है। लगभग बारह बजे जब गरबा खेलकर थकते है, तब उस दूध-पोहा को बड़े चाव से खाते है। चंद्र की रौशनी में वह दूध पोहा शीतल हो जाता है, गरबा खेलकर गर्म हुए शरीर में जब यह ठंडा व्यंजन पेट में जाता है, तो बड़ा मजेदार लगता है। 


    आज तो तबियत में थोड़ा सुधार मालुम हुआ, सवेरे अपना दिलबाग देखकर ऑफिस चल पड़ा, लेकिन पुष्पा के कारण वाया मार्किट जाना पड़ा। दोपहर तक तो दिलायरी लिखी, और साथ ही कुछ ऑफिस के काम भी। लंच करके, निकल पड़े मार्किट, और फिर तो सीधे ही अभी आठ बज गए। दिलायरी लिखने बैठा तो हूँ, लेकिन मुश्किल है। आठ बज गए है, घर जाने का समय। जितना लिख सकूँ उतना तो लिख ही लेता हूँ, बाकी घर पर लिखा गया तो भी ठीक है, वरना आज की तरह फिर कल सुबह पूरा किया जाएगा। 


जब कुछ खोता है, तो कुछ नया जन्म लेता है

    हाँ ! तो प्रस्तावना खोना-पाना वाली थी.. वही पर लौटते है। कईं बार कुछ खो जाता है, चला जाता है, वह केवल वस्तु नहीं होता। एक पूरा ही दृष्टिकोण, भाव और कहानी भी साथ साथ चली जाती है। कभी कोई छोड़कर चला गया हो, तो उसके साथ जुड़े नजरिये भी बदल जाते है। उसके साथ जुडी यादों के भी दृष्टिकोण बदल जाते है। और छोड़ जाने के बाद तो कहानी भी.. भाव में भी बदलाव हो जाते है। क्यों और कैसे के साथ जुडी हुई तमाम संभावनाएं प्रकट हो जाती है। 


    कुछ खोने पर पीड़ा इसी कारणवश अनुभव होती है, क्योंकि हमने मोह बांध लिया होता है। या फिर अधिकार में लिया होता है। नुकसान हमें हर बार सिखाता है, मोह जितना कम, पीड़ा उतनी कम। हमने कईं बार कुछ चीजों के खो जाने पर रतिभर फर्क नही पड़ता। वह भी इसी कारण से, हमे उस चीज के लिए ममत्व नही था। अपनापन नही था, मोह नही था। निर्मोहिपन पीड़ा का उपचार है। प्रत्येक वस्तु, या संबंधों से एक निश्चित शुरुआती दूरी बनी हुई हो, तब पीड़ा नही होती। हाँ, निष्ठुरता दिखती है वह, लेकिन पीड़ा से बचने का पथ भी वही है। 


    जब कुछ छीन जाता है, तब हम अपने आप से मिलते है, बिना आवरण के। ऐसा भी तो होता है, कि कईं बार हम अधिक निर्भर हो जाते है, कुछ लोगों पर, कुछ चीजों पर.. फिर किसी दिन यकायक वह छीन लिया जाए, तब एक अधूरापन अनुभव होने लगता है। तब उसके बगेर हमारी कितनी बिसात है, वह हमें पता चलती है। हमने कितने आवरण ओढ़ रखे है, सहूलियतों के नाम पर, तब पता चलते है। कुछ रिश्ते भी ऐसे होते है। वे रिश्ते खोकर ही हमें अपनी कीमत समझ आती है। कईं बार ज्यादा होती है, कभी-कभार कम। कम हुई तो हम ज्यादा होगा। लेकिन अक्सर कुछ बोझिल रिश्ते ही हमें एहसास कराते है, हमारी वास्तविक शक्तियों का। उनका भार हटते ही, जैसे उन्मुक्त शक्तियां अपने पुरजोश में आ जाती है।


रिश्तों के खोने का अर्थ और आत्मबोध की शुरुआत

    हर रिश्ते के खोने पर होते दर्द के पीछे एक सबक होता है। अभी कुछ दिन पहले ही इंस्टा पर रील देखी थी, एक आदमी तलाक से इतना खुश हुआ, कि उसने केक काटी, जिसपर लिखा था, बारह तोला सोना, और अठारह लाख कॅश देकर सेलिब्रेशन कर रहा था वह। उसने जो सबक पाया, वह उससे भी खुश था। रिश्ता टूटने पर खुशियां होने लगे, तो वह रिश्ता ही कितना भयावह रहा होगा? वह दर्द से मुक्ति का सेलिब्रेशन उसके लिए कितना मायने रखता होगा। कुछ रिश्ते हमें आजीवन ढोने पड़ते है। कुछ पुरुष नही पूरा कर पाते, उन मांगों को, जो उसके सामर्थ्य से कईं प्रकाशवर्ष दूर हो। 


विरक्ति का सौंदर्य — मोह से मुक्ति का मार्ग

    कुछ चीजें खो देनी ही बेहतर है। खोना आसक्ति से विरक्ति की ओर ले जाता है। और वहीं से आत्मबोध जन्म लेता है। लेकिन मन विरक्ति से थथरता है। इस मन ने ही कितनी सारी आसक्तियां बांध ली है। मेरी मनपसंद पेन से लेकर मेरी पसंदीदा स्त्री तक.. आसक्तियों में अहोनिष भ्रमण करते हुए, इसे विरक्ति के मार्ग का पथचिन्ह देखना ठीक नही लगता। अपने आप से जुड़ी कईं बातें, यह विरक्ति के आने से ही पता चलती है। अपनी बहुत सारी शक्तियां, आसक्ति छिपा लेती है, मोहपाश में। विरक्ति की स्थिरता बाहर से नही आती, खोने के बाद उसे भीतर से स्थिर करना होता है। विरक्ति भी चलित है, मन को नयी आसक्ति मिलते ही, विरक्ति मैदान छोड़ जाती है।


खोने के बाद जो बचता है — धैर्य, मौन और समझ

    क्योंकि जीवन या मन से, कुछ छीन जाता है, तो वह जगह खाली नही रहती। वहां फिर से कुछ उग निकलता है। प्रत्येक विदाई के पीछे स्वागत होता है। नूतनता का। नयापन, नई आसक्ति, नया मोह.. नया पाया। लेकिन इस खोया और पाया के बीच का जो संधिकाल है, यदि वहां गौर किया जाए, तो एक चित्र उभरता दिखता है। कि सहनशीलता, धैर्य और मौन हमने खोने के उपरांत सीखा। हमने जो खोया, हम उसे सहन कर गए। नया कुछ पाने तक का धैर्य हम में अपनेआप पनपा। और तब तक के लिए एक आंतरिक मौन भी सीखा। 


हर विदाई के पीछे एक नया स्वागत

    खोने के बाद जो पाया, वह है समझ। एक तुलना होती है, खोए हुए से बेहतर है या नही, बेहतर कर पाने की संभावना है कि नहीं, या कोई जरूरी बदलाव करने की जरूरत है या नही। यह समझ विकसित होती है। एक संतुलन अपने आप बन जाता है। जब तुलना पूरी हो जाती है, तब जाकर संतुलन आता है। या हम उसके लिए, या वह हमारे लिए, हमारे अनुसार ढल जाए, एक संतुलन का निर्माण हो जाता है। और तीसरी अच्छी चीज है, स्वयं से संवाद। बहुत जरूरी होता है यह स्वयं से संवाद। यहां हमे ज्ञात होता है, खोया उसकी कीमत, पाया उसकी कीमत और अपने आप की कीमत..! 


    शुभरात्रि।

    ०८/१०/२०२५, १०:३२

|| अस्तु ||


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