“माफ़ करना आसान नहीं होता” — लेकिन माफ़ी ही मन की आज़ादी है || दिलायरी 09/10/2025

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माफ़ करना क्यों मुश्किल होता है

    प्रियम्वदा !

    आज कुछ समय मिला है, तो मन में कुछ आ नहीं रहा है। हररोज समय नहीं होता है, तो अपनी नियमितता बनाए रखना चाहता हूँ। मैं अजीब ही नहीं, दुष्ट भी हूँ शायद। आज काफी खाली समय मिला और दिनों के मुकाबले। हालाँकि, इसे खाली नहीं कह सकता एक तरह से। क्योंकि मैंने कुछ और काम थे, जिन्हे दूसरों पर थोपे है। जैसे जैसे दीपावली नजदीक आती जा रही है, काम का बोझ बढ़ता जा रहा है। हमारी इस गैंग का सरदार भी सवेरे आठ बजे मिल पर हाजिर हो जाता है, और रात साढ़े आठ बजे तक रुका रहता है। 


“Forgiveness brings peace — an Indian man sitting calmly with a gentle smile, symbolizing the freedom of letting go.”

    प्रतिदिन की ही तरह, आज भी नौ बजे ऑफिस पहुँच चूका था। पहला काम दिलायरी मठारकर पब्लिश करना ही होता है। लेकिन अब मैंने जो तुमसे कहा था, कि नौकरी में और अधिक भार मैं उठा रहा हूँ, तो वह धूंसर भी मेरे ऑफिस पहुँचते ही कंधे पर लद जाता है। फिर क्या.. सारा दिन बैल मजदूरी करता है। कल रात काफी दिनों बाद अपने वही पुराने मैदान में बैठने गया था। मच्छरों का भारी आतंक है हमारे यहाँ। जिसे देखिए उसे डेंगू का असर है। होगा ही, मक्खी की कद-काठी में बराबरी कर रहे है हमारे यहाँ के मच्छर। 


    खेर, मैं सोच रहा था, दुनिया के मुश्किल कामों की सूची में एक आता है, माफ़ करना। क्षमा करने में सबसे बड़ा अवरोधक हमारा अहम उठ खड़ा होता है। और उस अहम् के आवरण के कारण माफ़ी की याचना के स्वर सुनाई नहीं पड़ते। यदि सुनाई भी दे जाए, तब भी और कितनी ही काल्पनिक भ्रांतियों के बिच माफ़ी देने जितना सरल काम पेचीदा हो जाता है। और उलझकर रह जाता है। माफ़ कर देने से दिलों पर बंधा बोझ हल्का होता है। 


खुद को माफ़ करना भी ज़रूरी है

    कुछ गलतियां खुद की भी हो सकती है, या हम कईं बार खुद को दोषी  मानकर, अकारण खुद को ही दण्डित करते है। कोई छोड़कर चला गया हो, या कईं बार तो पानीपुरी की प्लेट में कितनी पूरियां आती है, यह पता न होने पर भी लोग खुद को दोषी मान लेते है। और फिर गहरे पश्चाताप में डूब जाते है। उस पश्चाताप ले वे अधिकारी नहीं थे, लेकिन करने को कुछ था नहीं, तो सोचा यही कर लिया जाए। लेकिन फिर जो जरुरी काम थे, वे भी पीछे छूट जाते है, उस खुद को माफ़ न कर पाने के चक्कर में। 


    लगे हाथों एक और ज्ञान की बात लो तुम तो.. कि "माफ़ करने वाला बड़ा ही नहीं होता, वह भीतर से सबसे मुक्त होता है।" मुक्त इस लिए, कि उसे पता होता है, कि फालतू के बैर बढाकर समय बर्बाद करने से बेहतर से माफ़ करके मिटटी डालो..! समय बचेगा, नया उत्थान करेंगे.. नए निर्माण में ऊर्जा लगाएंगे तो ज्यादा बेहतर होगा। हाँ ! वैसे जो खुद भीतर के अहम् से मुक्त होता है, वही किसी को माफ़ कर सकता है। लेकिन मेरे जैसे घमंडी या अहंकारी लोग माफ़ नहीं करते.. वे तो प्रतिशोध से लिपटकर फिरते है। ठीक है, मजाक तक ठीक था, लेकिन सच में भीतर के कईं भाव जब मुक्ति देते है, तब जाकर क्षमा की अर्जी ऊपर पहुँचती है। कुछ कुछ सरकारी दफ्तरों जैसा ही हाल यहाँ होता है, इस माफ़ करने की प्रोसेस में कितने ही समझौते और रिश्वतें लग जाती है। 


    गुस्सा और शिकायत.. यह दोनों बेड़ियाँ बनकर दिल को जकड़े रखते है। दिल तो बेचारा भोला, मासूम, और पंपिंग करने वाला साधन है। फिर भी उसे ही माफ़ करने का अधिकार मिला है। लेकिन जब गुस्सा और शिकायत को पता चलता है, कि माफ़ी की अर्जी आ रही है, तो वे दोनों पहला काम दिल को किडनैप करने का करते है..! हाँ ! दिल का क्या है, वो तो सोचेगा कि अपने को इस पंपिंग के अलावा फ़ालतू झमेले चाहिए नहीं। इस लिए वह माफ़ी देने को तत्पर रहता है। अगर माफ़ी दिल से आ गयी, फिर गुस्सा और शिकायत की बेड़ियाँ भी चकनाचूर हो जाती है। सब कितना आपस में एक दूसरे के विरोधी जैसे है.. है न.. गुस्सा है तो माफ़ी नहीं, माफ़ी है तो गुस्सा नहीं। 


जब माफ़ी दिल से आती है

    एक तो यह किसी को माफ़ करने की प्रक्रिया भी तो बड़ी धीरी है.. कभी किसी ने किसी को तत्काल माफ़ किया ही नहीं होगा.. वो छोटी मोटी माफ़ी वाली बात अलग है.. किसी की भैंस चुरा ली, दूसरे दिन पकडे जाने के डर से वापिस कर दी, और माफ़ी मांग ली.. वो सब छोटी बातें है। यह तो किसी का पारावार नुकसान करने के बाद माफ़ी मांगी जाए.. और अगला भी अपना नुकसान को समेटने के स्थिति में न हो, तब जो माफ़ी का दान है.. उसकी बात हो रही है..! वह प्रक्रिया बड़ी धीरी है। हाँ, ना, हाँ, ना चलता रहता है। घाव भरने में भी तो वक्त लगता है, तो लाजमी भी है। लेकिन यह जो प्रक्रिया है.. उसमे मनोदशा बड़ी ही तूफानी रहती है। 


    यह बात भी तो है.. हम किसी को माफ़ कर देते है, फिर एक खुद को आज़ाद कर लेने की भावना भी तो आती है। जब तक हम किसी से खफा है, किसी को माफ़ नहीं कर पा रहे है, तब तक हम उससे जुड़े हुए भी तो है। वह हमारे मन को बांधे ही रखता है। लेकिन जैसे ही हमने उसे माफ़ किया, हमारा भी मन हल्का हो जाता है। हृदय से जैसे कितने ही जमाने का भार उतर गया। किसी और के लिए न सही, लेकिन खुद के हृदय से भी भार हल्का करना हो, तो माफ़ कर देना चाहिए। हैं न प्रियम्वदा ? वैसे मैं तो यूँ ही हृदय में कितने ही बोझ लिए चलता हूँ, तो एकाध और सही सोचकर नहीं कर पाता हूँ।


माफ़ी से मिलने वाली आंतरिक मुक्ति

    हालात नाम की भी एक जंजीर है। और हर इंसान उसका कैदी है। हर किसी के कुछ न कुछ हालात रहे होंगे, तभी तो उसे माफ़ी चाहिए होगी। यदि यह हालात की कथा, प्रथा समझ आ जाए, तब भी माफ़ कर देना बड़ा आसान हो जाता है। लेकिन हम ज्यादातर प्रयासों में उस हालात को सबसे पहले नजरअंदाज कर जाते है। उस हालात के कारण बाद में बहुत सारी हालत जरूर बिगड़ती है। संक्षेप में कहूं तो माफ़ी के द्वारा बीती को भूलकर वर्तमान और भविष्य को साफ़-सुथरा किया जा सकता है.. (बात तो तब भी वही है, मेरे जैसे अड़ियल माफ़ कर देने में मानते नहीं है।)


    फिर होता क्या है, कुछ रिश्ते टूटते नहीं है, बस माफ़ी की कमी के चलते बिखर जाते है। बिखरे हुए फिर भी समेटे जा सकते है। टूटने से तो बेहतर ही है। टूटा हुआ भी जुड़ता है, आजकल फेविकोल का ज़माना है। हाँ प्रियम्वदा, इंसान आजकल पृथ्वी से ब्रह्माण्ड का रास्ता जोड़ चूका है, लेकिन रिश्ता.. रिश्ता जोड़ने में उसे सो कांटे चुभते है। कुछ माफ़ी मांगकर निभ सकते थे, उन्हें भी बिखरने देता है। कुछ हांजी हांजी करके चल जाते, लेकिन वहां अहम् आड़े आता है। पुरुष को पुरुषपना है, स्त्री को फेमिनिज्म है.. मुझे अहमनिस्म है। 


माफ़ी का सच्चा अर्थ

    सौ बात की एक बात, माफ़ करना मुश्किल है, अहम को चोट पहुंचा कर किसी को माफ़ कर भी दिया जाए, तो भी आत्मा को तो राहत मिलती ही है। बोझ हल्का होने की। फिर एक दिन आता है, जब दिल कहता है.. "अब मुझे किसी से शिकायत नहीं।" वही क्षण होता है। जब माफ़ी पूरी तरह से जन्म लेती है। माफ़ी का सीधा हिसाब यही है, कोई गिला-सूखा (शिकवा) नहीं। तू मेरी भूल भूल जा, मैं तेरी भूल जाता हूँ.. तेरी भी चुप, मेरी भी चुप.. समझौता टाइप.. मैंने तुझे माफ़ किया, लेकिन फिर भी वो इस माफ़ी के उपकार तले दबा रहे, यह भी मैं चाहूंगा..! मतलब हकीकत में मैंने उसे माफ़ किया है, लेकिन वो इज़हार का आई लाइक यु एज़ फ्रेंड वाला...


    छोडो प्रियम्वदा ! समय हो चूका है रात के नौ.. दीपावली नजदीक आ रही है। अब ऐसे ही हररोज रात को ऑफिस पर लेट होने वाला है। सबके पगार चुकाने बाकी है। लेकिन वर्दी वाले फिर भी ग्यारह हजार से कम दीपावली देने पर मुँह फुलाते है। अभी तो एक वर्दी आयी है.. धीरे धीरे और भी वर्दियां आएंगी..! सबके पद का सम्मान इससे कम नहीं कर सकते। क्योंकि वर्दी का पता नहीं, वर्दीधारी जरुरसे नाराज़ हो सकता है। और उसकी नाराज़ी मतलब लंबे लंबे चक्करों में डायवर्जन लेना..! बस यह अंतिम अनुच्छेद के लिए वर्दी भी मुझे माफ़ करे। 


    शुभरात्रि। 

    ०९/१०/२०२५

|| अस्तु ||


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