अधुरो घड़ो छलके – आधा ज्ञान और अधूरा व्यक्तित्व
जमा खाली था प्रियंवदा आज तो, बिलकुल ही खाली..! करने को कुछ भी काम ही नहीं.. तो फ्री समय का सदुपयोग कर लिया, और जून महीने की तमाम दिलायरी एक फाइल में संकलित कर, किंडल पर अपलोड कर दी। अब जिस दिन इच्छा हुई, पब्लिश कर देंगे। तब तक के लिए वह किंडल के ड्राफ्टबॉक्स में इंतजार करती पड़ी रहेगी। असफल लेखक अपनी दूसरी बुक पब्लिश कर रहा है। बताओ.. गुजराती में कहावत है, "अधुरो घडो छलके घणो".. जैसे की आधा-अधूरा भरा हुआ घड़ा जरा सी हरकत पर ही छलकने लगता है। वैसे ही अधूरी जानकारी, आधी समझ, और अधूरा व्यक्तित्व वाले लोग भी जल्दी जल्दी बोलते है, ज्यादा दिखावा करते है, और अपनी कमी छिपाने के लिए ज्यादा हल्ला मचाते है। पूरा घड़ा चुपचाप रहता है, स्थिर रहता है, शांत और विनम्र.. मैं भी एक अधूरा घड़ा हूँ।
असफल लेखक का आत्मबोध
अपनी पहली पुस्तक के तो अभी तक सिर्फ दो ही ग्राहक ढूंढ पाया था। इतने में मैंने दूसरी की तैयारियां कर दी। हालाँकि यहाँ सारी ही गलती सिर्फ मेरी नहीं है। विषैले गजे ने मुझे चने के झाड़ पर चढ़ाया था। अपने कड़वे प्रवचन की रेल लगाते हुए बोला, "तुम लोग सफलता इस लिए ही प्राप्त नहीं कर पाते हो, क्योंकि तुम छिछरे पानी में छब-छब करते हो.. पहला प्रयास असफल रहा तो, क्या दूसरी बार प्रयास ही नहीं करेगा? कल अगर कब्ज हो गयी, और पेट साफ न हुआ, तो क्या फिर कभी टॉयलेट की ओर मुड़कर देखेगा भी नहीं? तुम्हे हवाबाण हरड़े का सेवन करना चाहिए। पवनमुक्तासन करना चाहिए, भुजंगासन करो। सतत प्रयास के पश्चात ही सफलता मिलती है।" बाबा विषंधर गजानंद के इस पेट-मरोड़ प्रवचन से मैं परितृप्त हो गया। ऐसा जमालगोटायुक्त मोटिवेशन तो वो मनदीप सहेस्वरी भी नहीं दे पाता मुझे। और आज खाली समय देखकर मैंने ड्राफ्ट तैयार कर दिया।
प्रियंवदा ! सवेरे सवेरे इतना मस्त ठंडा वातावरण होता है, कि उठने का मन ही नहीं करता। और आज तो सवेरे सवेरे क्या हुआ मुझे याद भी नहीं आ रहा है। मैं सोया तो था जमीन पर गद्दा लगाकर, लेकिन सवेरे आँखे खुली तब मैं सोफे पर था। यह कैसे हुआ, कुछ याद ही नहीं आ रहा। ठीक सात बज रहे थे। फिर तो क्या ही ग्राउंड में जा लेता? नौ बजे तक फ्रेश होकर ऑफिस ही आ गया। पता था कि आज का दिन बिलकुल ही खाली है। और अगले एक सप्ताह तक रॉ मटेरियल के आभाव में मिल आंशिक बंद भी रहने वाली है। इस असमय मिल बंद रहने के कारण मुझे पक्का यकीन है, दीपावली पर ओवर-प्रेशर रहेगा। और समस्या आ पड़ेगी मेरी रोड ट्रिप के लिए छुट्टी पर। खेर, जो होगा, देखा जाएगा।
KYC की उलझन और बैंक का अनुभव
"KYC" - यह एक बड़ी ही विचित्र वस्तु है। वैसे जरुरी भी है। वही लंच समय के लिए प्रसिद्द बैंक वालों ने मेरे बैंक अकाउंट पर स्टॉप लगा दिया। कल से मेरी UPI पेमेंट भी बंद हो गयी.. पहले तो लगा था कि जरूर उनका सर्वर बैठ गया होगा.. लेकिन मेसेज बॉक्स में उनकी और से सन्देश मिला था। धमकी ही थी, KYC करवाओ वरना 'झाड़' में जाओ..! मैं ठहरा गरीब आपबीती लिखता हुआ कथित लेखक.. 'झाड़' में जाने का खर्चा मुझे पोसाएगा नहीं। इस लिए मेरे पास शेष विकल्प KYC करवाना ही बचता था। वैसे भी काम कुछ था नहीं, लंच समय में ही चल पड़ा, लंच के लिए कुख्यात बैंक की ब्रांच पर। एक कमाल की बात बताता हूँ प्रियंवदा, बस जज मत करना मुझे। बचपन से देखता आ रहा हूँ इस बैंक को.. सिलिंडर आकर की आंटियां ही यहाँ पायी जाती थी..! चश्मा की फ्रेम को निचे करने के बजाए चहेरा निचा करते हुए आंटी जी पूछती नहीं नहीं थी, धमकाते हुए जैसे पूछती थी, "क्या काम है?"
बैंक ब्रांच का बदला हुआ माहौल
लेकिन अब अचानक से सुधार हुआ है जैसे..! इस रेगिस्तान में भी कईं सारे गुलाब खिले है। सौंदर्य से खिला बगीचा बना दिया गया है। लोग भी भँवरे की तरह कभी इस मेडम से उस मेडम तक हँसते-मुस्काते भिन-भिनाते पाए जाते है। अब यह कोई स्ट्रेटेजी है, या अचानक से वेकेंसी भरी गयी है, नहीं पता। लेकिन आज भी एक नई ही मेडम मिली मुझे। थोड़ा सांवला रंग, लेकिन मुखारविंद की आकर्षकता को और उठाते हुए दो वैम्पायर टीथ वाली मेडम लंच के लिए भागे, उससे पहले ही मैं उनके सामने खड़ा हो गया। उन्होंने अपनी बड़ी बड़ी तिरछी निगाहों से निराशाभरी दृष्टि से देखा, उनके इस दृष्टिपात में ही प्रश्न था। तो मैंने तुरंत अपनी समस्या व्यक्त की, "मेरा UPI काम नहीं कर रहा।" इस पर उन्होंने अपने पास बैठी एक और सुंदरता की मूरत से आँखों के इशारे से ही पूछा होगा, "अब इसका क्या करें?" लेकिन उनके होंठो से निकला, "मेडम ! इन सर का UPI काम नहीं कर रहा।"
पासवाली ने भी एक बार मुझे सर से पाँव तक एक ही नज़र में देखा, और बोली, "अकाउंट KYC नहीं करवाया होगा, तो STOP लगा होगा।" अब पहली वालीने मुझसे अकाउंट नंबर पूछा, मैंने बताया। उनकी कछुआछाप टाइपिंग स्पीड देखकर अंदाज आ गया, कि क्यों इस बैंक में अकाउंट खुलवाने के लिए भी वेटिंग चल रहा है। उनको दो बार अकॉउंट नंबर बताने पर उन्होंने एक बार टाइप किया, और अपनी कंप्यूटर स्क्रीन देखकर बोली, "सामने वाले काउंटर से KYC फॉर्म लीजिए, फिलप कीजिए। KYC होते ही STOP हट जाएगा।" अब मुझे घबराहट हुई। क्योंकि यह उनकी एक चाल हो सकती है। मेरे KYC फॉर्म लेने जाते ही कहीं वे लंच पर चली गयी तो? मैं खुद ही लंच स्किप करके इस बैंक में आया हूँ.. लेकिन इस बार भी कोई विकल्प नहीं था, उसी झाड़ में जाने के सिवा..! मैंने इस बार भी झाड़ में जाने के बजाए फॉर्म फिलप करना चुना।
जहाँ से फॉर्म लेना था, वो खाते-पीते घर वाली मेडम भी पता नहीं कौनसे सलमान के स्वप्न में खोयी थी। मेरे तीसरी बार पूछने पर वे कुछ कुछ वास्तविकता में उतर आयी, और मुझे फॉर्म दिया। फिर वो वही, एक जगह पर रस्सी से बंधी बॉलपेन से मैंने फॉर्म भरा। और वह लेकर तुरंत उस वैम्पायर दंतधारी मेडम के पास पहुँच गया। मेरी गैरहाजरी में उन्हें एक और इसी KYC से पीड़ित व्यक्ति ने रोके रखा था लंच पर जाने से। उसके बाद मेरा भी नंबर आया, उन्होंने फॉर्म देखा, अपनी बड़ी बड़ी आँखों से मुझपर फिर से एक तीखा दृष्टिपात किया, और पूछा फॉर्म के पीछे पासपोर्ट साइज फोटो लगाइये। मुझे ऐसा लगा कि उन्होंने शायद प्रतिशोध की भावना से ही उस फोटो के लिए कहा था। उन्हें लगा होगा कि पासपोर्ट साइज फोटो नहीं होगा मेरे पास।
वैम्पायर टीथ वाली मेडम और फॉर्म की कहानी
लेकिन उनका अंदेशा गलत साबित हुआ। मैंने अपने वॉलेट से एक आखरी बचा हुआ फोटो फॉर्म के पीछे टेबल पर रखी फेविस्टिक से चिपका दिया। वे तुरंत बोलीं, "साइन तो करो..!" अब मुझे भारी कन्फूज़न हुआ। दरअसल मैं अपनी सिग्नेचर ही भूल गया। क्योंकि बहुत कम उपयोग में आती है। ज्यादातर शोर्टसाइन करने होते है हरजगह। वे मुझ पर हँसती हुई मालुम हुई मुझे। कुछ देर दिमाग कसने पर याद आ गया। मैंने फिर से उन्हें फॉर्म लौटाया, लगभग विधि निपट चुकी थी। सब कुछ फॉर्म में लिखे हुए बावजूद, उन्होंने मेरे कर्कश स्वर से मेरा मोबाइल नंबर सुनने का आग्रह रखा। उसपर दूसरी वाली मेडम ने ही टोक दिया, कि सब कुछ लिखा हुआ तो है फॉर्म में। धीरे धीरे, नवविवाहिता की मंदगति से टाइप करते हुए उन्होंने अपडेट किया अपनी कंप्यूटर स्क्रीन पर।
मुझसे पीछा छुड़ाने का उन्होंने एक अंतिम प्रयास या हमला किया। "आधारकार्ड की एक फोटोकॉपी ले आइये।" मैंने तुरंत अपनी जेब से एक फोटोकॉपी निकाली, और उनके उस हमले को विफल कर दिया। अब उनका तरकस भी खाली हो गया था। और मेरा काम उन्होंने प्रायोरिटी पर कर दिया। लेकिन प्रत्येक प्रेमियों की धोखेबाज गर्लफ्रेंड की ही तरह उन्होंने मुझे भी धोखा दिया। उन्होंने कहा था, कि "कुछ ही मिनिटो में UPI सेवा काम करने लगेगी.." लेकिन मैंने घर जाते हुए नाश्ते की एक दूकान पर पेटीएम चलाया तो ट्रांज़ेक्शन फ़ैल कर गया। इच्छा तो थी, कि मैं इस धोखे से हताहत हो जाऊं.. एकाध बोत्तल गटक जाऊं.. अपने दाढ़ी-केश बढ़ा लू.. देवदास बन जाऊं.. लेकिन याद आया, कि वो मेडम कोई मेरी प्रेमिका थोड़े थी, प्रेम-प्रसंग तो नहीं था यह..! इस लिए चुपचाप सह गया मैं।
इस बार भी विकल्प वही था, इंतजार करो या झाड़ में जाओ..! और तुम्हे तो पता है प्रियंवदा ! मैं ठहरा गरीब, आपबीती लिखता हुआ एक असफल लेखक..! झाड़ में जाने का खर्च उठाने से बेहतर लगा इंतजार करना। जैसे संध्या करती है, सूर्य का इंतजार, मैं भी कर रहा हूँ.. तुम्हारा, और उस बैंक वालों के KYC अपडेट का।
इंतजार की कविता – प्रियंवदा के नाम
शुभरात्रि।
२२/०८/२०२५
|| अस्तु ||
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