“Instant ज़िंदगी: क्यों हर चीज़ को जल्दी में जीना चाहते हैं हम?” || दिलायरी : 23/08/2025

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जल्दी की आदत – एक आधुनिक बीमारी

    वो गाना है न, कि "भला हुआ मोरी गगरी फूटी, मैं पनिया भरन से छूटी..", लेकिन मेरी गगरी फूटे या घड़ा.. मुझे कुछ न कुछ लिखना होता है। फिर मैं जो लिखता हूँ वो होता अज्ञानता की अंबार। सोच लो प्रियंवदा ! आगे पढ़ने से पहले आज तो मौका दे रहा हूँ, यही से लौट जाओ..! फिर कहना मत कि मैंने चेताया नहीं था। ऐसा है, मेरा दिमाग है, आज बिलकुल खाली.. क्योंकि पेट भी खाली है। दोपहर को घर भी नहीं गया। उल्टा आज तो भोजन सामने से चलता हुआ मेरे पास आया, लेकिन मैंने अनादर कर दिया। बहादुरने लंच बनाया था, मुझे न्यौता भी दिया था। लेकिन मैं अभागा मना कर बैठा। 


"Why are we living in hurry? From instant food to instant fame, explore how impatience shapes modern life and why slowing down matters."

    यह बात बिलकुल ही निश्चित है, कि मैं अपनी ही कही पर अडिग नहीं रह सकता हूँ। आज भी सवेरे कसरतों का मैंने त्याग कर दिया। मन को विवश करना आसान नहीं है यह भी एक सिद्ध बात है। ऑफिस पहुंचकर बीते कल की दिलायरी पब्लिश की.. और शेयर कर दी। काम धाम कुछ था नहीं.. पूरा दिन बस रील्स देखि है, और वही शरद ठाकर की बुक पढ़ी है। उस बुक को पढ़ने में एक समस्या हो रही है। वह लघुकथाएं इस कारण से दो पन्नों के बाद नई कहानी होती है। इस कारण एक फ्लो नहीं बन पाता। और मैं किसी और विषय में व्यस्त हो जाता हूँ। पूरा दिन इसी में बीता दिया है मैंने आज का। 


    दो दिन की ब्लॉग पोस्ट के अंत में मैंने कुछ कविता जैसा गढ़ने की कोशिश की। पता नहीं कितना सफल हो पाया हूँ। हालाँकि सच कहूं तो मेरे मन में तो उसे लिखते समय भाव पूर्णतः स्पष्ट थे। लेकिन मेरे साथ समस्या सबसे बड़ी यह है, कि मैं बाद में भूल जाता हूँ। और खुद ही परेशां हो जाता हूँ। फिर थकहारकर खुद को ही दिलासा दे देता हूँ, कि कुछ तो डीप लिखा है मैंने। (मजाक..  मजाक..  प्रियंवदा) कोशिश जारी रहेगी, जब तक कोई त्रस्त होकर वाहवाही नहीं कर देता। क्योंकि मैं तो लिखता ही ऐसा हूँ, की अगर कोई पढ़ लें तो सुनने वाले के कान में परदे ही नए डलवाने पड़े। देखो प्रियंवदा ! मैंने तो शुरू में ही कहा था, अब भी कह रहा हूँ। अभी भी समय है, पूरा पढ़ना जरुरी नहीं है। बाकी तुम्हारी मर्जी। 


इंतज़ार का महत्व भूलते हुए

    आज दोपहर को जब खाली था, और रील्स देख रहा था, एक बहुत मस्त बात दिमाग में घर कर गयी। धैर्य.. धैर्य की कमी होती जा रही है। हमें अब बहुत कुछ इंस्टेंट चाहिए। खाने में इंस्टेंट नूडल्स, बातों में इंस्टेंट रिप्लाई, इंस्टाग्राम पर इंस्टेंट फेम..! मैं खुद इतने दिनों से इंस्टाग्राम चला रहा हूँ, मेरे सौ फॉलोवर्स भी नहीं हुए है। अरे यह ब्लॉग को तो २-३ साल हो गए.. लेकिन गिनती का एक रीडर है। धैर्य तो मुझमे भी नहीं है। मेरी इंस्टाग्राम फॉलोवर की संख्या देखकर मुझे भी एसिडिटी होती है। लेकिन मैं बेफिकरा हूँ। मुझे अपनों की नहीं पड़ी, इंस्टाग्राम की कहाँ याद करते बैठूं? मैं अपनी ब्लॉग पोस्ट भी सिर्फ एक व्यक्ति को भेजता हूँ..! क्योंकि ज्यादातर समय मैं वो वाला आदमी रहता हूँ, कि तीर निशाने पर लगा तो अर्जुन वरना फेंकना तो वैसे भी था ही। 


    आजकल यह ऑनलाइन खरीदी वाले भी नेक्स्ट डे डिलीवरी देने लगे है। इंस्टेंट में वे भी मानने लगे है। मुझे डर है किसी दिन कोई कपल डॉक्टर के पास न पहुँच जाए, कि हमने प्रोसेस कर दी है, हमें कल ही बच्चा चाहिए। और जिस हिसाब से सब कुछ अंगूठे के दम पर इंस्टेंट होने लगा है, कहीं मानवजात फिर से अंगूठाछाप न हो जाए। कुछ दिन पूर्व टीवी पर ही देख रहा था, हर कोई मोटापे को अंगीकार करने लगा है। बच्चे से लेकर वयस्क तक। जिस हिसाब से प्रकृति गर्म होती जा रही है, मोटापा उस गर्माहट को सहन नहीं कर पाएगा। अरे लेकिन मोटापा नहीं आएगा तो क्या होगा? स्त्रियां घर में पोछा भी खड़े खड़े लगाती है। पहले माथे पर मटका रखकर पानी लाना पड़ता था, अब नल देने लगा। पहले आदमी अखाड़े में चले जाते, अब ऑफिस में बैठे रहते है। 


जल्दी की चाह का असर हमारी ज़िंदगी पर

    रिश्ते भी तो धीरे धीरे डेवलप होते है। अरेंज मेरेज में क्या प्रेम नहीं होता था? समय के साथ साथ निर्माण हो जाता। छोटी छोटी अटखेलियां रिश्ते को मजबूत करती। अब तो मोबाइल है, एक लेफ्ट स्वाइप के बाद दूसरा राइट स्वाइप हो भी सकता है। लोग बाजू में बैठे व्यक्ति को समझने के बजाए दूर देश की किसी व्यक्ति से पूछ लेता है, "थाना थाया?".. मुझमे भी धैर्य की भारी कमी है। मैं खुद भी कईं सारे पॉडकास्ट, या कुछ ऑडियो नोट्स 1.5x पर सुनता हूँ। पता नहीं बचे हुए समय का मुझे कौनसा झंडा गाड़ना होता है। इंतजार का धैर्य तो मुझमे भी नहीं है। कभी किसी का लेट रिप्लाई आता है, तो मैं फिर मुद्दा ही भूल गया होता हूँ। 


    किसी नई विद्या के आचरण में यदि विलंब होता है, तो मैं अपना धैर्य खोने लगता हूँ। जैसे मैंने आज दोपहर को ही एक बैंकिंग लाइन की प्रोसेस सीखी थी। लेकिन समस्या यह है कि उसे आचरण में लाने में अभी काफी समय बाकी है। तब तक का धैर्य कहाँ से लाऊँ? या फिर जैसे मुझे कुछ चाहिए होता है। कोई ऑनलाइन खरीदी की हो। लेकिन कईं बार डिलीवरी कैंसिल हो कर रिटर्न हो जाती है। मेरे नसें फ़टने को उतारू हो जाती है। बीते कल ही मैंने अपनी बैंक में kyc update करवा लिया है। लेकिन आज भी जब upi काम नहीं कर रहा था, तो मैंने बैंक के कस्टमर केयर वालों को तीन बार लताड़ लिए है। जबकि उनका कहना है, कि आज शनिवार को बैंक बंद होने के कारण प्रोसेस विलंब में जा चूका है। 


    प्रियंवदा ! यहाँ तक पढ़ लिया है, तो तुम ही बताओ.. ज़िंदगी का मजा किस में है? fast forward में, या एक ठहराव के pause में? इंस्टेंट नूडल्स में है या दूध से दहीं से मक्खन से होते हुए घी में? सूर्य नमस्कार में है, या gym के प्रोटीन पावडर में? इंस्टेंट में है या इंतजार में? उबलती हुई चाय में या इंस्टेंट कॉफी में? सोच लो, मैं तो यह भी पूछ सकता हूँ, कि वेटिंग लिस्ट में या रिजर्वेशन में?


प्रियंवदा !
कैसे कर पाते है लोग,
सालों तक प्रतीक्षा,
यहाँ तो मौका एक काफी है,
धैर्य की धज्जियाँ उड़ाने को,
वही धैर्य,
जो बीज अंकुरित होने को रखता है,
समंदर की सतह से विपरीत,
उसकी गहराई में होता है।
राख में रहता है अग्निकी आशा में,
धैर्य प्रतीक्षा है,
एक सही पल को घटित होने की।
विरह के सेंकडो जलबिंदुओं में,
होता होगा वह धैर्य?
या समय उड़ेलने का
अनंत पश्चाताप..!
अनंत


    शुभरात्रि।

    २३/०८/२०२५

|| अस्तु ||


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और भी पढ़ें :

  • Neocolonialism – सत्ता और समाज पर गहरी नज़र।
  • Dilayari – मेरी निजी डायरी की झलक।
  • Accounts Never Leave You – ज़िंदगी के बही-खातों की कहानी।

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