बैंकिंग का झंझट और KYC की मुश्किलें
कईं बार हमें अड़ जाना पड़ता है, प्रियंवदा ! कुछ भी आसान नहीं है यहाँ। रिश्तों से लेकर दुनियादारी तक। अंगद की तरह पैर जमाना पड़ता है। तब जाकर कुछ काम निकलता है। अन्यथा कोई पूछता भी नहीं है। दोपहर डेढ़ घंटा बैंक में बैठा रहा था, इस लिए यह लिखा। आज तो सारे ही लोग निश्चित रूप से मन ही मन, या तो मुँह पर ही बैंक के कर्मचारियों पर बरस पड़े थे। आज पता चला, बैंकिंग लाइन में यह सुंदरियाँ क्यों इतनी भर्ती हो रही है। सीधा और वाजिब कारण यही है, कि कोई ग्राहक हाथ न छोड़ दे।
आज तो साढ़े छह जाग गया था, और ग्राउंड में कसरत के लिए भी गया था। हालाँकि सिर्फ वाकिंग करके ही संतोष स्वीकार लिया था। क्योंकि समय हो चूका था साढ़े सात। नौ बजे तक ऑफिस पहुंच गया था। मिल बंद है, तो काम कुछ है नहीं। सवेरे से बस रील्स देखि है, और लगे हाथों वो दो कथित कविताओं को मैंने इंस्टाग्राम पर शेयर भी कर दी। खेर, ठीक साढ़े बारह मैं और गजा निकल पड़े। मुझे काम था बैंक का, kyc करवाने के बावजूद अकाउंट फ्रिज हुआ पड़ा था। और गजे को उसकी बैंक से विथड्रॉ करवाना था। मैंने सोचा था, मुझे तो बस वो खड़े दन्त-धारी मेडम को याद दिलाना है, कि मैंने kyc करवा लिया है, अब अकाउंट चालू कर दो। अब इसमें तो मुश्किल से दो मिनिट लगनी थी।
बैंक कर्मचारियों की मजबूरियां
लेकिन बैंक पहुंचे तो पता चला, आज तो काफी भीड़ उमड़ पड़ी थी। ज्यादातर लोग इसी चक्कर में फंसे थे। और बुरे फंसे थे। दस-पंद्रह मिनट बाद उस दंति मेडम ने मेरे सामने देखा, मैंने अपनी समस्या बताई। उन्होंने तारीख पूछी, मैंने कहा शुक्रवार को सारा तामझाम आपको सौंपकर गया था। वे उठी, और कागज़ी पहाड़ में मेरा वाला फॉर्म खोजने एक आदमी को लगा आयी। सोचा बस अब तो पांच मिनिट में सब कुछ हो जाएगा। लेकिन दस मिनट्स के बाद पता चला, मेरा फॉर्म मिल नहीं रहा है। भीड़ बढ़ती जा रही थी। मेरे जैसे और भी थे। जिनका KYC करवाने के बाद भी अकॉउंट अनफ़्रीज़ नहीं हुआ था। तभी एक अंकल आए, पेशे से वे भी सरकारी बाबू थे, वे भी केंद्र के, यह बैंक भी केंद्र की..!
अंकलने आव देखा न ताव, और चिंघाडे.. औरतों को कहीं भी काम पर रखना ही नहीं चाहिए। बड़ी धीरी होती है। तीस सालों से मेरा यह एक ही बैंक अकाउंट है। डेली ट्रांसक्शन्स हो रहे है, फिर भी इनको अपने ग्राहक के बारे में जानना है। मेरा एक ही बैंक-अकाउंट है, और उसी को यह लोग फ्रिज कर के बैठ गए है। स्त्रियों को किसी भी इस तरह के महत्त्वपूर्ण पद पर रखना ही नहीं चाहिए। इनको ऐसा काम देना चाहिए, जहाँ समयसीमा न हो। यहाँ इतने लोग खड़े है, लेकिन देखो, भीड़ बढ़ती जा रही है...
मैं भी सहमत था उस अंकल से। क्योंकि अब मुझे भी आधे घंटे से ज्यादा हो चूका था। दो मिनिट की प्रोसेस होगी, यह सोचकर आया था। गुस्सा और हो आता है, जब एक ही काम के लिए दोबारा धक्का खाना पड़े। उसने मुझे नहीं बताया, लेकिन मुझे इतना समझ आ गया, कि उस दंति ने मेरा फॉर्म गुम कर दिया है कहीं। यह तो अच्छा है, उसने यह नहीं कहा कि दोबारा फॉर्म भरो। इस मामले में उनकी अच्छाई माननी पड़ेगी, कि भले लेट हुआ, लेकिन मना नहीं किया। पौने एक का खड़ा था, पौने दो बजने को आए। अब मेरा काम एक मेडम से दूसरी तक शिफ्ट हुआ। अब इस वाली मेडम ने कहा, थोड़ा समय लगेगा। उतने में हम लोग गजे की बैंक गए, विथड्रॉ करवा आए, समय लगा मात्र पंद्रह मिनिट।
दो बजे वापिस मेरे बैंक आकर देखा तो मेडम गोली दे गयी थी, खुद ही लंच के लिए निकल ली..! फिर मैं और गजा भी निकल पड़े क्षुधा की तृप्ति हेतु। सावन खत्म हो चूका था, तो आज गजे को चढ़ाया, 'देख भाई ! कोई भी व्रत पूर्ण हो, तब किसी को भरपेट भोजन कराने पर ही पुण्य की प्राप्ति होती है। अब यहाँ और कोई तो है नहीं। चल मुझे ही अच्छी होटल में भोजन करा दे। मैं तुजे आशीर्वाद दूंगा, तेरा व्रत सफल हो जाएगा।' और हम चल पड़े, हाइवे पर एक स्पेसियल दाल बाटी वाले के वहां। वैसे भी जब भी वहां से गुजरते थे, तो यही आशा करते थे कि कब सावन ख़त्म हो..!
ग्राहक और सिस्टम दोनों की भूलें
ठीकठाक स्वाद था। जो फेमस दालबाटी वाला है, उसके लेवल से तो यह बहुत दूर है अभी..! उस फेमस दालबाटी वाले के वहां तो वेटिंग चलती है। एक के उठते ही दूसरा बैठ जाता है। टेबल कम पड़ते है उसे। चार बाटियों में तो बस बोल पड़े हम दोनों ही। दाल भी इसने तो दालफ्राई ही पकड़ा दी थी। दोबारा इसका मेहमान बनने पर हम दोनों ने एक सुर में चौकड़ी लगाई, और चल पड़े मेरी बैंक में। अब वो मेडम भी भूख भांग कर लौट चुकी थी। पेट भर जाने के बाद ज्यादातर लोग थोड़े और मंद हो जाते है। अबकी बार तो इस मेडम के सामने वाली चेयर पर गजा बैठ ही गया। तब जाकर उन्होंने फिर से वे सारी प्रोसेस दोबारा पूर्ण की, जो मैंने फॉर्म में फिलप की हुई थी। एनुअल इनकम कितनी है, कितना पढ़े लिखे हो, आधार नंबर क्या है.. थोड़ा समय लगा लेकिन आखिरकार काम हो गया। हाथोहाथ गजे को पांचसो ट्रांसफर करके चेक भी कर लिया, क्योंकि पिछले शुक्रवार को भी इन लोगो ने कहा था, कि दस मिनिट में अकाउंट चालू हो जाएगा।
३-४ जने तो इतना परेशां हो गए थे, कि अकाउंट ही बंद करवा रहे थे। उसकी भी अलग लाइन थी। २-३ बार तो मुझे भी यही ख्याल आ गया था, कि अकॉउंट बंद ही करवा दूँ, लेकिन फिर याद आया, मेरी कुछ इन्वेस्टमेंट हुई पड़ी है इसमें.. मेरा तो ज्यादा समय जाएगा। तीन बजे तक हम ऑफिस लौट आए थे। लेकिन मेरे दिमाग में अब भी यही बात घूम रही है, कि कहीं न कहीं उन अंकल की बात सही भी है। और मुझे तो यह भी लग रहा था, कि बैंक जानबूझकर स्त्रियों को इस काम में लगाता है, जहाँ ज्यादा इंटरेक्शन करना हो लोगो से। क्योंकि कुछ ग्राहक गुस्सैल भी होते है। इस मेडम के स्थान पर कोई पुरुष कर्मचारी होता यदि, तो उससे तो मैंने खुदने भी गाली-गलौज कर ली होती।
मेरे जाने के बाद भी वे अंकल तो वहीँ भटक रहे थे, अपना KYC का फॉर्म हाथ में लिए हुए। सचमे ऐसे कामों में स्त्री नहीं ही चल सकती, यदि वह अनुभवी नहीं है तो। कमसे कम टाइपिंग तो थोड़ा स्पीड में करने वाला व्यक्ति होना चाहिए। यह तो कीबोर्ड पर एक एक बटन खोज खोज कर टाइप करते थे। एक बार तो मुझे इच्छा हो आई कि इनसे कीबोर्ड छीनूँ और खुद ही सारी डिटेल्स भर लूँ..! लगभग लोग सुना ही रहे थे इन मैडमों को। अब मुझे यह हो रहा है, कि वे भी बेचारी कैसी फँसी होगी.. एक तो इतनी सारी आँखे उन्हें घूर रही होती है। ऊपर से यह पैसो से जुड़ा हुआ जिम्मेदारी वाला काम। उनका भी थोड़ी धैर्यतापूर्ण काम करना बनता तो है।
मेरी दिलायरी – एक दिन बैंक में
मेरे साथ यही समस्या है, प्रियंवदा.. मुझे दोनों पक्षों की मजबूरियां दिखाई देती है। और मैं निष्पक्ष हो जाता हूँ, और अपना भी नुकसान करवा लेता हूँ। सीधी बात तो यही है कि इन लोगो ने मेरा इतना समय व्यर्थ किया, दो-तीन बार बैंक तक जाना पड़ा, और बार बार उन्हें अकाउंट नंबर बताना पड़ा। समस्या समझनी पड़ी। यहीं अगर मैं इन पर चिल्ला पड़ता, थोड़ा हो-हल्ला मचा देता, तब भी यह लोग ग्राहक की ही गलती मानते है। यह तो अच्छा है, कि मुझे इन दो दिनों में कोई एमरजेंसी नहीं पड़ी.. वरना क्या हाल होता? पैसे होते हुए भी खर्च न कर सको.. इससे बड़ी मजबूरी क्या होती होगी?
अपने यहाँ एक यह भी तो समस्या है.. जब तक बात बिगड़ नहीं जाती हम लोग जागते भी तो नहीं है। जब तक ट्रैन छूटने न वाली हो हम स्टेशन पर टहलते है.. हमे ज्यादातर काम एनमौके पर करने पसंद है। जितना टाल सकते है हम किसी काम को उतना ज्यादा टालते है। ठेलते है। आखिरकार नौबत पर आ जाती है, तब जाकर हम आलस झड़कते है। अब जैसा व्यवहार ग्राहक करेगा, वैसा ही दुकानदार करेगा..! हम किसी भी काम को प्राथमिकता से नहीं स्वीकारते। बशर्ते वह अवैकल्पिक हो।
खेर, शाम के साढ़े छह बज रहे है। अब विदा दो.. अकाउंट अनफ़्रीज़ हुआ है, इसी ख़ुशी में कुछ खर्चा करना है मुझे।
शुभरात्रि।
२५/०८/२०२५
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