बैंक LC, किताबें और जीवन की भागदौड़ – जून का जूनून और भारतीय संस्कृति || दिलायरी : 26/08/2025

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बैंक और LC की मुश्किलें

    वाह..! काफी जिम्मेदारियों वाला दिन था प्रियंवदा ! वैसे है, अभी दिन पूरा नहीं हुआ है। साढ़े पांच बज रहे है। बैंक की LC खोलना एक काफी मुश्किल और विचित्र काम है। LC माने लाइन ऑफ़ क्रेडिट..! ज्यादातर इम्पोर्टर्स को इस लाइन ऑफ़ क्रेडिट की जरुरत पड़ती है। हमारा तो काम ही इम्पोर्टेड आइटम पर टिका हुआ है। खेर, कुछ प्राइवेट बैंक की सिस्टम ही ऐसी है, कि वे लोग आईडी-पासवर्ड दे देते है, कहते है, इतना काम तुम खुद कर लो..! पहले हम लोग बैंक को पैसा देते थे, तो बैंक वालों से छोटे-मोटे काम भी करवाते थे, जैसे कि 'साहब यह फॉर्म भर दीजिए..' लेकिन अब समय बदल गया, अब बैंक से पैसे (लोन) लेते है, तो बैंक वाले भी बहुत सारे काम हम से करवाते है। इसे लिटरली कह सकते है, 'जैसे को तैसा..!'


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अधूरी किताब और प्रेम कहानियों का ओवरडोज़

    खेर, सवेरे ऑफिस आकर, वही पोस्ट पब्लिश करना, शेयर करना.. यही सब होता है। उसके बाद सोचा फ्री समय है, तो उस अधूरी बुक को पढ़ ली जाए..! 'रणमां खिल्युं गुलाब'.. लेकिन कितने दिन हो गए, आज तक वह बुक मैं पूरी नहीं पढ़ पाया। सबसे वाजिब कारण यही है, कि इस बुक में हर तीसरे पन्ने से नई कहानी शुरू होती है। यूँ समझिये कि फिल्म के बजाए छोटी छोटी रील्स देख रहे हो..! कहानियां सारी मजेदार है। सारी ही प्रेम कहानियां है। लेकिन दो-तीन पढ़ लेने के बाद, मुझे प्रेम का ओवरडोज़ चढ़ा हुआ लगने लगता है। तो मैं उसे आगे पढ़नी रोक लेता हूँ। या कोइ न कोई काम आ जाता है, तो भूल भी जाता हूँ। पता नहीं कब तक पूरी होगी.. मुश्किल से चालीस पन्ने पढ़ने बचे होंगे..!


ऑफिस, खर्चे और छोले भटूरे

    दोपहर को करना था खर्चा.. ऑफिस के प्रिंटर की स्याही ख़त्म हो चुकी थी, तो कार्टरेज रिफिल करवाने थे, एक नया लेना था, गजा अभी कईं दिनों से बोल रहा था, उसका कीबोर्ड काम नहीं कर रहा, तो यह यह सब काम लेकर निकल पड़े..! लगे हाथो डेढ़-डेढ़ प्लेट छोले भटूरे भी निगल आए। अरे हाँ ! प्रियंवदा! मैंने तुम्हे बताया या नहीं? मैंने अपनी दूसरी बुक 'दिलायरी : जून का जूनून' ऐमज़ॉन किंडल पर ड्राफ्ट में छोड़ रखी थी, उसे पब्लिश कर ने के लिए रख दी थी कल। शाम तक वह लाइव भी हो गयी..! पहली बुक तो चली नहीं, दूसरी भी पब्लिश कर दी..! 


भागदौड़, ठहराव और भूत की कहानी

    यह बुक वाली भागदौड़ मजेदार है। कल-परसो लिखा था न मैंने, कि जीवन में ज्यादा मजेदार क्या है? इंस्टेंट या धैर्य... किसी ने प्रत्युत्तर दिया था, जब भागदौड़ मची हो, तो एक ठहराव चाहिए। और जब शांतिकाल हो, अकर्मण्यता छाए उससे पहले भागदौड़ चाहिए। बड़ी सही बात है। दोनों ही सप्रमाण हो तो ही। निरि धीरजता से कछुआ का टैग मिल जाता है, और सतत भागने वाले को भूत का..! कोई बहुत काम करता है, तो उसे कहते है, 'भूत की तरह बस काम ही काम किए जा रहा है, कुछ देर भी ठहरता नहीं।' शायद यह भूत वाली बात उस कहानी से ली गयी होगी, कि एक बार एक आदमी ने भूत को वश में कर लिया। लेकिन भूत ने वश होते ही शर्त रखी थी, मुझे काम पर काम चाहिए, खाली हुआ तो तुम्हे ही मार डालूंगा..! 


    फिर तो उस आदमी ने भूत से महल बनवाया, तालाब खुदवाये, पैसे, भोजन, संपत्ति सब कुछ, कुछ ही देर में भूत ने हाजिर कर दिया। अब और कोई काम उसे याद नहीं आ रहा था, बात जान पर बन आयी थी। तब उसे एक तरकीब सूझी.. उसने भूत से एक सीढ़ी बनवाई, और दूसरा काम न देने तक भूत को वह सीढ़ी चढ़-उतरने का ही काम सौंप दिया। शायद तब से कहा गया है, कि कोई बहुत काम करता हो तो वह भूत की तरह काम करता है। 


दिलायरी : जून का जूनून – मेरी दूसरी किताब

    'दिलायरी : जून का जूनून' के बारे में बताऊँ तो, वह बुक है, जून महीने की दिलायरियों का संग्रह। जून महीना दोरंगी होता है। जून में एक ओर अग्निवर्षा सी गर्मी होती है, तो साथ ही साथ अचानक से बंधे बादलों से बरसी राहत भी..! वर्षाऋतुका प्रथम चरण है जून। हिन्दू संस्कृति का जेठ और आषाढ़। तीव्र धूप से, अतिवर्षा का महीना। जून में प्रचंड युद्ध होता है सूर्य और बादलों का.. कभी बादल सूर्य को घेर लेते है, तो कभी सूर्य उन्हें परास्त कर देता है। जून में ही गर्मी के तीखेपन से मैं परेशां हुआ था। स्वास्थ्य भी बिगड़ा था, और मैंने अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होकर, दिनचर्या में कुछ बदलाव करने का निर्णय लिया था। दिन-ब-दिन मैंने कुछ न कुछ सुधार जरूर से अपनाया है..!


टाइम-टेबल और आलस्य का सच

    अपने भीतर, अपनी दिनचर्या में, अपने आचरण में, समय समय पर बदलाव होते ही रहते है। कुछ हमें ध्यान होते है, कुछ बेध्यानी में बदल जाते है। भले ही वह बालिश हरकत थी, एक टाईमटेबल जो बनाते थे हम बचपन में। वास्तव में एक टाइम-टेबल हमे अब भी चाहिए होता है। और वह है दिनचर्या का टाइम टेबल। कम से कम सवेरे बिस्तर छोड़ देने का तो एक फिक्स समय होना ही चाहिए। लेकिन ज्यादातर मैं छुट्टी के दिनों में सारे टाइम-टेबल का बतंगड़ बना देता हूँ। आलसियों का एक ही टाइम टेबल होता है प्रियंवदा ! और वह है समय की चाबुक। जब लगे कि अब बात अनिवार्यता तक पहुँच गयी है, तब आलसी आदमी उठता है। 


चचा, टैरिफ और भारतीयता की जीत

    तुरुप चचा आजकल छाए हुए है। यहां चचा की जीत के लिए यज्ञ-हवन करवाए थे लोगो ने, और चचा तो अलगे निकल लिए। तारीफ के बदले टेरिफ लगा दिस..! मुझे लगता है चचा का सबसे फेवरिट गाना भी यही होगा कि "डील (ढील) देदे रे देदे रे भैया, इस पतंगे को डील (ढील) दे.." यह तो अपने पप्पू से भी चार कदम आगे निकला, पप्पू तो सिर्फ बोलने में ही गड़बड़ करता है। यह चचा तो जो बोले वही गड़बड़ है। अब उसे कौन समझाए, कि हम भारतीय है, पांच हजार वर्षों में आक्रांताओं को निगल गए। अंग्रेजो को बगरे मार-कुटाई के भगा दिया। तो यह टेरिफ क्या बला है? अमरीका क्या कहता था? रसिया से आयल मत खरीदो.. उसे क्या पता इस बार तो गणपति बाप्पा भी S400 पर बैठकर आए है। 


भारत की संस्कृति और सर्वग्राहिता

    खेर, दुनिया के साम्राज्यों का कब्रस्तान अफ़ग़ानिस्तान को कहते है। लेकिन भारत में तो जब अफगानी भी, भले ही आक्रांता बनकर आए, लेकिन यहीं के होकर रह गए। भारत की संस्कृति ही ऐसी है। सर्वग्राही। सब कुछ समाहित हो जाता है यहाँ। हम कितना ही पाश्चात्यकरण कर ले, या उसका विरोध भी कर ले, हमारे मूल संस्कार है, इस भूमि की जो परंपरा है, वह कभी भी हमारे भीतर से नहीं जा सकती। क्योंकि हमारे इष्ट ने ही कहा है, 'सर्व धर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणम व्रज..' हर कोई, अमीर-तवंगर, कोई भी.. कहीं न कहीं जीवन में ऐसे संकटों में फंसता ही है, जहाँ उसे एक ही आश्रय मिलता है, ध्यान का.. जप का.. तप का.. मन्त्रों का.. शांति की खोज इसी भूमि पर आकर समाप्त होती है।


    मोहेंजोदड़ो जैसे नगर मीट गए होंगे, लेकिन उनकी प्रकृति पूजा आज भी इस भूमि में जिवंत है। चिपको आंदोलन की गौरा देवी हो या खेजड़ली की अमृता देवी.. हमने वृक्षों के लिए जीवन दिए, तीतर को बचाने के लिए युद्ध किये, शहीद हुए। इस देश ने सदा से ही दुनिया को सबसे अलग उदहारण दिए है। हाथी का महावत मजबूत हो तो, हाथी बाघ के सामने भी आगे ही बढ़ता है, वह पीछे कदम नहीं भरता। 


    प्रियंवदा ! इतना कुछ पढ़ लिया है, तो मेरी यह कथित कविता भी जरूर पढ़ो.. 

प्रियंवदा !
किसी के बिना कुछ
अटकता नहीं है, लेकिन,
व्यापार को जबान चाहिए,
कटक को कप्तान चाहिए,
काम को फरमान चाहिए,
निशान को संधान चाहिए,
और,
और प्रेम को प्रमान चाहिए..!
उस बहुरूपी प्रेम ने,
प्रमाण मांगे है, सदैव,
निर्दोष होने के,
निष्कलंक होने के,
निश्छल होने के...
अन्यथा, प्रेम रूप बदल लेता है,
वहम बन जाता है।
अनंत तक..!

    

    शुभरात्रि। 

    २६/०८/२०२५

|| अस्तु ||


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