Digital Diary, Friendship, Reviews & Regrets: प्रियंवदा को लिखी संध्या की चिट्ठी || दिलायरी : 03/08/2025

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प्रियंवदा! जब मैदान बोला और मन भीग गया…

    प्रियंवदा ! संध्या का समय है। दो दिशाओं से आरती के नगाड़े और झालर के नाद सुनाई पड़ रहे है। साथ ही पानीपुरी वाले भैया की घण्टी भी। यह खुला मैदान, ढेरों छोटे बच्चे खेल रहे है। हरी घास में कुछ बुड्ढे बैठे है। औरतों का फोटोशेसन चल रहा है। दूर दो कार खड़ी है, और कुछ लड़के वर्तुलाकार बैठे है। दिनभर के ताप पर मरहम सी ठंडी हवाएं चल रही है। आसमान में आधे से थोड़ा ज्यादा चंद्र प्रकाशमान हो चुका है। बादल उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ चुके है। इंसानों ने पुण्य प्राप्त करने के लिए, इस मैदान में चींटियों का निवास खोज-खोजकर आटे-चीनी का मिश्रण डाला है, और आवारा सांड वह तमाम आटा, चींटियों समेत चाट रहे है। और धीरे धीरे चारोओर घरों की रोशनियां झबुकने लगी है। धीरे धीरे अब सारा कोलाहल शांत होने लगा है। 


Trio Friendship of Dilawarsinh

सप्ताह की सरकती परतें और जन्मदिन की चहलपहल

    लो प्रियंवदा ! एक और सप्ताह यूँ सरक गया, जैसे केले के छिलके पर पैर रखा हो। सप्ताह की शुरुआत हुई थी मेरे जन्मदिन से। उस एक दिन थोड़ा रोमांच रहा, हाँ! वे शुभकामनाओं को तो मैं परेशानी मानता हूँ, क्योंकि वे व्यस्त कर देती है, बस 'धन्यवाद' कहना अनिवार्य होता है इस कारण। लेकिन उसके बाद तो इस हफ्ते कुछ काम, तो कुछ मेरी बुक के प्रमोशन में समय व्यतीत हुआ है। इसी सप्ताह में मेरी पहली ई-बुक पब्लिश हुई, और इसी सप्ताह मैंने तीन दिन के लिए फ्री भी कर दी। हालांकि फ्री करते ही.. (यह मैदान के बीचोबीच मेरे वाछटीये को  डबल स्टैंड चढ़ाकर, ऊपर बैठे बैठे लिख रहा था, कि अचानक से दो सांड लड़ पड़े। और मुझे सांडों से बड़ा डर लगता है। क्योंकि काफी रील्स देखी है मैंने, जिसमे सांड किसी राह चलते आदमी को दस-बारह फिट उठाकर पटक देते है।  तो अपन बाइक चालू कर घर की ओर लपक लिए। अभी पौने दस बजे वापिस ग्राउंड में लौटे है।) ... स्टेटिस्टिक्स में भारी उछाल देखने मिला।


Kindle की दुनिया और Review की दुश्वारियाँ

    काफी पन्ने पढ़े गए है। और देखके खुशी भी हुई। हाँ! एक बड़ी समस्या यह हो रही है, कि अमेज़न किंडल पर बहुत से मित्र रिव्यू नही दे पा रहे है। कारण यह है कि अमेज़न वालों की नीति है कि जिसने सालभर में 150 से अधिक रुपये अमेज़न पर खर्च किये हो, वे ही इस बुक पर अपना रिव्यू दे सकते है। बताओ.. यह भी कोई बात हुई भला? सरेआम दादागिरी लगती है। हालांकि उनका एप्प, उनकी मर्जी चलेगी ही, जैसे महाराष्ट्र में मराठी बोलनी पड़ेगी..! खेर, इस सप्ताह एक बुक खरीदी गजे ने.. क्योंकि उसे मैंने कहा था, 'थोड़ा दोस्त पर भी खर्चा करना सीखो..!' उसने खरीद तो ली, लेकिन वह भी रिव्यू नही दे सका। हालांकि उसने रूबरू मेरी तारीफ में कहा था, कि "अच्छा लिखता है.. लेकिन वो प्रियंवदा अंधी है क्या, जो तेरे लिए आई लव यू की चिट्ठी बेंच में छोड़ जाएगी?" खेर, दोस्तों से तो अच्छा रिव्यू मिलना तय ही है। गजे ने अपने नाम का ही एक और पात्र पढ़कर कुछ आपत्ति जरूर जताई। उसका कहना था, कि ऑफिस वाले गजे का नाम कुछ और रखना चाहिए।


गजे की खरीदी, स्नेही का अपनापन और Amazon की दीवारें

    दूसरी बुक जब बिकी, तब मुझे बड़ी झिझक हुई। क्योंकि वह स्नेही ने खरीदी। पता नही क्यों? जबकि मैंने उन्हें एक ड्राफ्ट प्रति, पब्लिशिंग के पहले ही भेज दी थी। दूसरी बात स्नेही मुझसे उम्र में कम है, और मुझे बड़ी आपत्ति हुई अपने मन मे, कि उनसे इस बुक के लिए पैसे लेने पर। कुछ ही समय मे स्नेही से एक अलग ही घनिष्ठता बंध गयी है। तो जब उन्होंने बुक खरीदी तो मैंने काफी मना किया था। लेकिन अफसोस, रिव्यू तो उनका भी नही आ पाया। कारण वही है, ऐमेज़ॉन की नीति।


Book Promotion की जद्दोजहद और Sunday की खोई मिठास

    फ्री करने के बाद भी मैंने बहुत से लोगो को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। कईयों को बार बार मेसेज किये। काफी मित्रो ने डाउनलोड कर ली है। और कुछ पन्ने पढ़े गए है, यह मुझे सटेस्टिक्स से मालूम हुआ। हालांकि रिव्यू तो उनसे भी आना मुश्किल है। क्योंकि ऐमेज़ॉन बहुत कम लोग चलाते है। जब फ्लिपकार्ट, मिशो, और भी ऐसे कईं सारे विकल्प मौजूद हो, तो किसी एक का चलन कम ही होता। वैसे रविवार भी अब कुछ खास नही लगता। कारण यही है कि, फिर से अब रविवार ऐसे हो चले है, दोपहर को घर लौटे तब तीन बजे चुके होते है। वैसे भी कुछ काम के बिना ज्यादा खालीपन अनुभव होता है। मैं कुछ देर पौधों के पास बैठा। तो याद आया, महीनाभर हो चुका है। नर्सरी वाले ने मुझे खाद का पैकेट चिपकाते हुए कहा था कि महीने में एक बार जरूर से डालना। समस्या यह हुई, कि वो खाद का किलोभर का पैकेट रखा कहाँ था, यह याद न आए। एक बार तो लगा कि जरूर वो 'गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल' वाला ले गया।


गमलों में खाद, यादों में बात और मिट्टी में भरोसा

    लेकिन फिर एक जगह से मिल भी गया। अब तो लगभग 7-8 गमले हो चुके है। उन सब मे एक-दो मुट्ठी खाद उड़ेल दिया। एक तो अपना हाथ थोड़ा भारी लगता है मुझे, गेंदे वाले गमले की मिट्टी खोदते हुए अहसास हुआ कि जड़े खोद दी मैंने मिट्टी के बजाए। समस्या तो बड़ी हो गयी है, लेकिन देखते है। अभी तो वर्षा ऋतु चल रही है। पुनः जड़ें प्राप्त कर लेगा वह। रात को मैदान में बैठा था, और वही नियत समय पर गजा आ गया। देखो मैत्री में तिकड़ी हो तो बहुत बार ऐसा होता है कि तिकड़ी में एकाध गैरहाजिर ही रहे। पिछले कुछ दिनों से पत्ते से बोलचाल बंद है, और गजे के साथ बैठकी लग रही है। पहले गजा नही आता था, पत्ता साथ बैठा करता था। यारी दोस्ती में समस्या क्या है पता है प्रियंवदा? मजाक-मस्ती..! कभी कभी मजाक-मस्ती बेहद चली जाती है। मेरे जन्मदिन पर पत्ते ने रात के दस बजे स्टोरी चढ़ाई.. वो भी कौनसी फ़ोटो? जिसमे मैं उसी की शादी के महफ़िल में बैठा हूँ, और टेबल पर सुरापान की सामग्री पड़ी है। यह तो छडेचौक बदनाम करने वाली स्टोरी हो गयी..


पत्ता, गजा और दोस्ती की सर्द लड़ाई

    क्यों चढ़ाई यह स्टोरी? क्योंकि पार्टी नही दी मैंने। बताओ.. प्रियंवदा ! मित्रों को यदि पार्टी न दो तो वे बदनाम करने लगते है। फोन करके मैंने पूछा, कि यह स्टोरी पब्लिक तो नही की होगी? प्राइवेट ही होगी न? तो बोलता है, पब्लिक स्टोरी ही लगाता हूँ मैं। तो बस, वो पार्टी नही दी इस लिए स्त्रियों की तरह रूठकर बोलचाल बन्द कर गया। और इस बार तो मैंने भी कोई भाव नही दिया। और इस बार तो यह शीत-युद्ध लंबा खींचने का मैंने भी मन बना लिया है। गरज नही होनी चाहिए दोस्ती में। मुझे गरज पड़ी तो मैं बुलाऊँ, उसे गरज पड़े तो वह बुलाये.. ऐसा नही चलता। खेर, तो आजकल रात को भोजनादि से निवृत होकर जब मैं ग्राउंड में कुछ टहलकर एक जगह बैठ जाता हूँ, तब गजा आ धमकता है, और उसकी पहली लाइन यही होती है, "तो क्या कहती है प्रियंवदा?" उसने 'मई की मुलाक़ातें' पूरी पढ़ ली। और बहाना मिल गया है, प्रियंवदा के नाम से छेड़ने का। फिर रात ग्यारह बजे तक हमलोगों ने जो बकैती की है, ट्रंप के टैरिफ, बिहार में प्रशांत किशोर का विजय, ब्रेन और हार्ट ट्रांसप्लांट, कैंसर, आत्मश्लाघा की पराकाष्ठा, युवावस्था को पार चुके व्यक्ति में होती विवाह की तलब, स्त्री नियंत्रण या स्त्री पर शासन, मृत्यु के बाद क्या? 


प्रशांत किशोर बनाम मोदी लहर — मैदान गर्म था!

    हम दोनों अगर किसी बात पर अड़ गए, तो फिर तो हम दोनों ही एकमत कभी नही हो पाते। गजे का मानना है कि इस बार बिहार में प्रशांत किशोर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहा है। जबकि मेरा कहना है कि मोदी लहर आज भी बरकरार है बिहार में। प्रशांत किशोर के मैंने भी वक्तव्य सुने है। उसके तमाम मुद्दों से मैं भी सहमत हूँ। बिहार का सर्वश्रेष्ठ विकास होना चाहिए। बीमारू स्टेट का टैग बिहार पर से हट जाना चाहिए। दूसरे राज्यो में होता बिहारियों का पलायन रुकना चाहिए। सारे ही मुद्दे उचित और वाजिब है। प्रशांत किशोर के पास राजनैतिक अनुभव भी है, चुनावो का रोडमेप बनाना उसे बहुत अच्छे से आता है। गजे का मानना है, कि बिहार में लालू की पार्टी में दम रहा नही, दलबदलू महाशय का भरोसा नही, तो विकल्प एक ही बचता है। प्रशांत किशोर। लेकिन मैं अड़ा रहा, क्योंकि चुनाव परिणाम के बाद भी बहुत से बदलाव होते है। विधायक जी के पास भी विकल्प होते है, जितने के बाद पक्ष बदल लेने का। जैसे महाराष्ट्र में सत्तापक्ष तोड़कर विपक्ष में बैठी भाजपा सत्ता में आ गयी। बिहार में भी यह संभव है।


    खेर, हम लोग इसी ज्वलंत मुद्दे को रोककर घर को निकल पड़े, क्योंकि रात के ग्यारह बजते ही अब मुझे निंद्रा घेरने लगती है। एक बॉडी क्लॉक मैंने सेट कर ली है, सुबह छह बजे जाग जाने की। इसी कारण से रात ग्यारह बजे निंद्रा देवी मुझे अपनी आगोश में लेने लगती है।


    शुभरात्रि।

    ०३/०८/२०२५

|| अस्तु ||


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– दिलावरसिंह


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