“ठंडी रातें, वॉलीबॉल और किताबों का सुकून || दिलायरी : 16/10/2025”

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रातों की ठंड और वॉलीबॉल का जुनून

    प्रियम्वदा !

    आजकल रात को वॉलीबॉल खेलने का भूत चढ़ा है। रात के बारह बजे तक हम लोग वॉलीबॉल खेलते है। घर आता हूँ, तब पैरों के तलवे दर्द कर रहे होते है। पूरा पसीने से तरबतर शरीर होता है। ठण्ड का अनुभव तब जाकर होता है, जब गिला शरीर सूख जाए। मौसम रात में इतना ठंडा हो जाता है, कि कंबल ओढ़ना ही पड़े। और सवेरे इतनी औंस गिरती है, कि बाइक सीट वगैरह सब गीला मिलता है। मैं रात को अपना सर अजरख से लपेट कर सोता हूँ। कुछ दिनों तक तबियत संभालनी जरुरी लग रही है, ट्रिप तो शायद ऑन है ही..


“ठंडी रात में अजरख ओढ़े युवक, वॉलीबॉल खेल के बाद किताबें पढ़ते हुए – दिलायरी 16 अक्टूबर 2025”

सुबह की किताबें और नगेन्द्र विजय का सफर

    आज सवेरे देखा, वो पार्सल खुला हुआ मिला। उसमे वही दो बुक थी। दोनों ही गुजराती है। मैंने ऊपर ऊपर से देख ली। हार्डकवर है, एक की कीमत है पांचसौ, दूसरी की तीनसौ अस्सी। लेकिन मुझे छहसौ में दोनों मिल गयी। एक पर एक फ्री थी। सुपर क्विज नामक बुक है, और लेखक है नगेन्द्र विजय। वही प्रसिद्द नगेन्द्र विजय जिनके बारे में मैंने कुछ दिनों पहले लिखा था, कि उनका मासिक मैगज़ीन सफारी बंद हो चूका है। बचपन से पढ़ रहे थे उन्हें। विज्ञान जगत और इतिहास तथा भूगोल में मेरे रस का कारण उनका यह मैगज़ीन सफारी ही है। 


किताबें, अलमारी और नई शेल्फ का ख्वाब

    सफारी बंद होने का कारण लोगो का वांचन में घटा हुआ रस ही है। क्योंकि अब ज्यादातर ज्ञान का स्त्रोत यूट्यूब बन चूका है। तो नगेन्द्र विजय ने सफारी बंद करके यूट्यूब चैनल चालू किया। वहीँ उन्होंने इस बुक के बारे में बताया था। उनके चुनिंदा विज्ञान लेख इस 'सुपर क्विज' नामक पुस्तक में संकलित किए गए है। और वह बुक आर्डर करने पर एक और बुक फ्री मिलनी थी। मैंने आर्डर कर दी थी, और साथ में फ्री वाली बुक 'युद्ध ७१' पसंद की थी मैंने। सुपर क्विज हार्डकवर में, तथा कलर प्रिंट वाली बुक है। और युद्ध ७१ हार्डकवर तथा ब्लैक एंड वाइट बुक है। दोनों ही अच्छी है। ज्ञान वर्धक है। 


    आज सवेरे ही पता चला, जब मैं इन दो बुक को अपनी अलमारी में रख रहा था। मेरा वह अलमारी का दराज़ भर चूका है। मुझे कोई और तरीका बिठाना पड़ेगा। नहीं ! मेरे पास कोई सो-दोसो पुस्तकों का कलेक्शन नहीं हो गया है। लेकिन जो भी दस-बारह है, वे अब उस दराज़ में फिट नहीं बैठ रही है। मुझसे ज्यादा अच्छा कलेक्शन तो गजा कर चूका है। उसने तो कईं सारी इकट्ठी की है। खेर, मैं अब सोचता हूँ एक वॉल माउंटेड बुक शेल्फ बनवा लू। ताकि रूम में सामने ही दिखे। और पढ़ने का मन भी करें। यह तो बंद दराज़ में होती है, दिखती भी नहीं, तो पढ़ने का विचार भी नही होता। 


पटाखों की आवाज़ें और बचपन की यादें

    कल रात को कुँवरुभा के आदेशानुसार "बिली-बम" लेकर गया था। वह कुपोषित पटाखा भी आवाज तो भारी कर रहा है। क्योंकि सवेरे जागते ही, कुँवरुभा ने आँगन में धमाके शुरू कर दिए थे। सुबह सुबह यह पटाखों की आवाजें अब इरिटेट करती है प्रियम्वदा। किसी दिन हम भी सुबह चार बजे से वो मार्शल (सुतली) बम फोड़ना चालू कर देते थे, और पूरी सोसायटी की नींद हराम कर देते थे। नया साल (दिवाली के दूसरे दिन हमारे यहाँ नया साल होता है।) होने से कोई कुछ बोलता भी नहीं था। सुतली बम का तो धमाका भी बहुत बड़ा होता है। एक आता था चकली बम.. उसका पैकेट खरीदने का एक मात्र कारण यही होता था, कि वह जब फटता तो कागज़ों का ढेर लग जाता। और वह फोड़ने से घर के आगे कागज़ों का ढेर लग जाता था, ताकि लोगो को लगे कि इसने बहुत सारे पटाखे फोड़े है। 


दिलबाग, नाई और शहर का ट्रैफिक

    सवेरे ऑफिस आने से पूर्व दिलबाग की खबर लेनी थी मुझे। लेकिन नाश्ता करके सीधा ऑफिस आ गया। दिलबाग में जाना भूल गया। कारण वही था, कि कुँवरुभा अपने बिली बम मर्जी पड़े वहां फेंक रहे थे। दो पटाखे मेरी बाइक पर फेंके थे, और एक कार पर। आज ऑफिस पर काफी आराम है। वैसे भी हमारे यहाँ काम का कुछ ऐसा ही तरीका है। दोपहर को काम कुछ खास नहीं था, एक चेक डालना था बैंक में, तो निकल पड़ा। मुझे तो दस मिनिट लगती है मार्किट पहुँचने में। चेक डालकर चल पड़ा नाइ के पास। नाइ भी नवरा ही था। बाल सेट करवा लिए और शेव क्लीन करवा ली। उसने तुरंत दिवाली मांग ली.. फ्री ही था मैं भी, मैंने कहा, एक तो हम तुम्हे बाल देते है, ऊपर से पैसे भी देते है। दिवाली तो तुम्हे हमें देनी चाहिए। वो हंसने लगा, लेकिन दिवाली तो फिर भी उसने ली ही। 


    फिर से एक लम्बे ट्रैफिक जैम को चीरते हुए ऑफिस पहुंचा। आज थोड़ी जल्दबाजी में हेलमेट ऑफिस पर ही भूल गया था। रस्ते में ट्रैफिक जैम को खोलने के लिए कईं पुलिस वाले खड़े थे। एक बार को लगा, कि मर गए, यह त्याहारों पर दंड वसूलेंगे। हेलमेट का चलन फटेगा। लेकिन इतना अच्छा था, कि उन लोगो को इस जैम को क्लियर करने के अलावा फुर्सत नहीं थी। वैसे चालान करते तो मुझे भी कहने का मौका मिल जाता कि दिवाली किस मुँह से मांग लेते हो तुम लोग..? ठीक से काम कर रहे होते, तो यह दैनिक दो-तीन घंटे का जैम नहीं लगता था। 


शाम की ठंड और नीम के नीचे की चहचहाहट

    फ़िलहाल शाम के छह बज रहे है। मौसम धीरे धीरे ठंडा होता जा रहा है... लो जी साढ़े छह बज गए। बाहर अँधेरा हो चूका है। मतलब हल्की रौशनी है, लेकिन अँधेरे जैसा ही है। ऑफिस के ठीक बाहर खड़ा नीम का वृक्ष, चिड़ियों की चहचहाट से गूँजित है। दो-तीन दिन पहले नीम की नीची हो चुकी डालियाँ कटवा दी है। तो अब चिड़िया भी सारी काफी ऊपर बैठती है। पहले तो सोई हुई चिड़िया को चाहें तो हाथ से पकड़ सकते थे, इतनी नीची डालियाँ थी। ऑफिस का बिल्डिंग लड़ियों से सजा हुआ है। एक सीरीज़ में लगी हुई लाइट्स एक ही रंग की काफी अच्छी दिखती है। धीरे धीरे पूरा शहर भी रौशनी से झगमगाहट करने लगेगा। 


रातें ठंडी हैं, पर मन गरम है...

    रातें ठंडी होने लगी है प्रियम्वदा ! लेकिन मन अब भी गरम है। खेल, किताबें, पटाखे.. हर चीज में एक अनकहा अपनापन है। शायद यही छोटी छोटी बातें ही जिंदगी को ज़िंदा रखती है। यूँ तो प्रत्येक पल में एक जीवन है, लेकिन हमारा मन, उस पलों को ज्यादा चाहता है, जहाँ तुम्हारी बातें हो.. शायद दिलायरी भी। मैं तुम्हे यहाँ से कितना ही याद करता होऊं.. लेकिन वहां तुम्हारे पास मेरे शब्द ही पहुँचते हो, नहीं जानता। इतना जरूर जानता हूँ, कि यह भावनाएं उस दीवार को नहीं भेद पाती है। मैं चाहता तो हूँ, कि फिर से अपने शब्दों को सँवारने के लिए कुछ दिनों का ब्रेक ले लू.. तुम्हारा एक दीदार करने के लिए मैंने कितने ही प्रयास किए है। लेकिन तुम हो, कि उस दीवार में एक खिड़की भी नहीं चाहती। 


    शुभरात्रि। 

    १६/१०/२०२५

|| अस्तु ||


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