वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन और रोज़मर्रा की भागदौड़ — दिलायरी : 16/11/2025
प्रियम्वदा !
मुझे एक बात समझ नहीं आयी, प्रशासन करना क्या चाहता है? उनके पास सारी माहिती होती है, फिर भी हमसे पूछ रहे है, कि बताओ, 2002 में तुम कहाँ थे? गुजरात मे फिलहाल वोटर लिस्ट की वेरिफिकेशन चल रही है। कुछ दिनों पहले सरकारी शालाओं के शिक्षक घर घर जाकर फॉर्म वितरण कर आए थे। यहां की वोटरलिस्ट में जिनका नाम है, उन्हें अपना वेरिफिकेशन देना था, मतलब जिनका वोट करने का अधिकार है, वह व्यक्ति यहां मौजूद है या नहीं? और अगर किसी ने अपना घर किसी और जगह पर बदल लिया है, तो क्या उसने अपना वोटर आईडी में एड्रेस अपडेट करवाया है या नहीं? इसमें भी भारी विचित्रता मुझे यह लगी, कि फॉर्म के लास्ट पार्ट में 2002 में आपका वार्ड से लेकर कुछ नम्बर्स फिलअप करने थे, वो नंबर तो उन्हें ही पता होता है, जिनके पास वोटरलिस्ट हो।
शिक्षकों की मुश्किलें और फॉर्म की उलझनें
शिक्षकों को अपना स्कूल में पढ़ाने का काम खत्म करके, इसी भागदौड़ में लग जाना पड़ता है आजकल। बड़ी समस्या यह भी थी, कि स्त्रियां यदि अपने ससुराल में है, तो 2002 में यदि अपने पीहर में थी, तो उन्हें वहां की डिटेल्स मंगवानी पड़ती। यही फॉर्म का समाधान लेने मैं आज रविवार होने के बावजूद स्कूल पर पहुंचा। सरकारी शिक्षक तो वहीं मिलने थे। घर से निकला, तो देखा बाइक के पिछले टायर से एक कील बाहर झांक रहा है। आश्चर्य की बात यह भी थी, कि इतना बड़ा कील टायर में धंसा होने के बावजूद रातभर में हवा नहीं निकली थी। पंक्चर वाले अब्दुल की दुकान पर पहुंचा, उसके पास सवेरे सवेरे कितने ही ग्राहक थे। एक तो कल रात बारह बजे तक वॉलीबॉल खेलकर सोया था, तो सुबह उठा भी आठ बजे था। और घर से निकलते निकलते दस बज ही गए थे।
बाइक में कील और अब्दुल की दुकान
अब्दुल के पास काफी देर खड़ा रहने के बाद भी उसे अपने मकसद की ओर ध्यान देता न देख, मैं कील समेत ही बाइक लेकर किसी और अब्दुल के पास जाने लगा। तभी उसने रोक लिया, बापु दो मिनिट, अभी ठीक किए देता हूँ। शुक्र है, अब्दुल को अपना मक़सद याद आ चुका था। उसने किल निकाल दी, टायर चेक किया, कील टायर के भीतर नही गयी थी, उपर उपर ही थी, तो पंक्चर तो नही हुआ था। अब्दुल को तीस रुपये दिए, और शाला की और चल दिया। यह कन्याशाला है। और मैंने दाखिल होते ही उस मेडम को ढूंढ लिया जिन्होंने मेरे घर पर यह फॉर्म दिया था। मैं तो गुस्से में दाखिल हुआ था कि फॉर्म दे जाते हो, तो ले भी जाया करो। यह क्या बात हुई कि फॉर्म वापिस लौटाने की जिम्मेदारी हमारी? दूसरी जगहों पर ऐसा नही था, शिक्षक खुद ही फॉर्म वापिस ले जाते है।
कन्याशाला की हंसमुख मेडम
सोचा था, सरकारी शाला की कोई खडूस मेडम होगी। लेकिन यह तो मेरी हमउम्र, और काफी हंसमुख निकली। सच कहूं तो यहां मैं पिघल गया। गुस्सा फुर्र हो चुका था। उन्होंने बड़े प्यार से समझाया, कि "2002 में आप कहाँ थे, और वहां की वोटरलिस्ट में आपके क्या नंबर थे, वह सब माहिती आपको ही देनी होगी। मैं तो आपने दिया वह फॉर्म as it is सबमिट कर दूंगी, फिर मामलतदार ऑफिस में आप धक्के खाते रहना।" उनकी यह धमकी भी उनकी मुस्कान की तरह मीठी लगी। इस शिक्षण जगत में सबसे ज्यादा भर्ती उत्तर गुजरात के लोग होते है। उनकी बोली भी थोड़ी अलग रहती है, गुजराती ही, लेकिन वे ज्यादा स्पष्ट गुजराती बोलते है। मैंने अपने पुराने पते पर फोन घुमाया, वहां से वोटर लिस्ट मिल भी गयी मुझे। मैंने इस मेडम को दी। उन्होंने बाकी फॉर्म खुद फिलअप कर दिया। उनकी हैंडराइटिंग भी काफी अच्छी थी, मैं और पिघल गया यह राइटिंग देखकर।
ऑफिस, दिलायरी और रविवार की बेचैनी
यह काम निपट चुका था। ऑफिस पहुंचते पहुंचते ग्यारह बज गए। ग्यारह बजे भी, मैं ही सबसे पहले ऑफिस पहुंचा था। ऑफिस पहुंचते ही याद आया, कल की दिलायरी तो लिखनी ही बाकी पड़ी है। दिलायरी लिखने बैठा, तो रविवारीय काम टकराने लगे। फिर भी जल्दबाजी में जितना जो बन सका वह लिख दिया। और पोस्ट पब्लिश कर दी। रविवार हमारे लिए छुट्टी का दिन है ही नही। रविवार वस लेबर के लिए बना है। मजदूरी करने वालों के लिए। ऑफिस के मजदूर को रविवार को भी अपने मगज के घोड़े दौड़ाने को मजबूर किया जाता है। दो बजे तक घोड़े दौड़ दौड़कर अपने अस्तबल में लौट आये, और मैं भी घर लौट आया। तीन बज रहे थे, जब मैं खाना खाने बैठा। न तो खाने का टाइम है, न तो नींद लेने का। उतने में कुँवरुभा अपने टूटी फूटी सायकल ले आये। बोले इसको ठीक करो।
कुँवरुभा की सायकल और बाबूलाल की मरम्मत
सायकल नई लाकर दी थी, लेकिन साहबज़ादे ने पटक पटक कर पुरानी कर दी। टायर के साइड सपोर्टर्स ढीले हो चुके है, और इनकी अभी उम्र नही है सायकल बेलेंस बनाकर चलाने की। तो सायकल उठायी, फिर से एक और अब्दुल के पास.. लेकिन यह अब्दुल नहीं था, बाबूलाल था। उसने कुछ नट्स टाइट किए, सीट नई डाल दी, और हैंडल सीधा कर दिया। चैन में आयल कर दिया। हो गयी.. सायकल कितनी सही चीज है न, कोई भी फालतू का तामझाम ही नही होता इसमें। न आयल चेंज की झंझट, न ब्रेक शू नए डलवाने, न ही आयल फिल्टर। बस पंक्चर हो सकता यह वाहन, ज्यादा से ज्यादा चैन लूस। सायकल ठीक होते ही साहब चल पड़े गली के और बच्चों के साथ रेस लगाने..! और मैं चल पड़ा अपने वाछटीये को धुलवाने। काफी दिनों से बाइक धुली नहीं थी। सर्विस वाला भी रविवारीय मौज में था, उसने कुछ ज्यादा ही सर्विस की। बाइक के चमक जाने के बाद बारी थी अपनी.. पहुंच गया नाई के पास। आज बाप नही बेटा था वहां.. वह कटिंग करता रहा, और मैं कुर्सी पर बैठा बैठा झपकियों से लड़ता रहा।
वॉलीबॉल, गप्पें और दिन का ढलना
शाम को वही वॉलीबॉल.. फिलहाल पौने बारह बज रहे है। हम लोग वॉलीबॉल खेल लेने के बाद कुछ देर गप्पे लड़ाते हुए, और पुराने दिनों को याद करते हुए बैठे रहे.. सर्दियों में आग को याद करते हुए.. उन बातों को लिखना तो है मुझे, लेकिन अब नींद आ रही है।
शुभरात्रि
१६/११/२०२५

