तकनीक और तन्हाई — जब लेखक को कोड समझाना पड़ता है
प्रियम्वदा !
कईं बार ऐसा भी होता है, कि तुम किसी काम के पीछे अपना पूरा दिन लगा दो। बार बार, लगातार प्रयास करो। लेकिन हर बार असफलता ही हाथ लगे। और आखिरकार तुम उस काम के पीछे बर्बाद होता समय बचाने में लग जाओ..! इतनी सारी असफलताओं के पश्चात भी तुम्हे वह काम करना ही करना है। छोड़ नहीं सकते। बशर्ते बस समय-मर्यादा नहीं होनी चाहिए। आज पूरा दिन ही, सवेरे से लेकर अभी तक मैं एक ही काम में लगा हुआ था। अनेकों असफलताओं को अब मैंने अपना लिया।
आज सवेरे ऑफिस जाने से पूर्व दिलबाग में चक्कर मार आया। कल का सींचा हुआ पानी अभी तक मौजूद था। सर्दियाँ अपना प्रभाव दिखाने लगी है। सवेरे ऑफिस पहुंचकर आज कंप्यूटर के आगे बैठ गया हूँ, अभी तक स्क्रीन के सामने ही हूँ। आज कुछ भी काम था नहीं, तो सारा समय अपने ही एक काम में लगा दिया। लेकिन इतनी असफलता तो कभी मेरे हाथ लगी नहीं है। पूरा दिन खपत हो गया, लेकिन वह काम पूरा न हुआ।
Kindle की रूठी मोहतरमा और मेरी असफल कोशिशें
दरअसल क्या हुआ है, कि आज मेडम किंडल रूठ चुकी है मुझसे। ठीक किसी नखरीली संपादक की भाँती। आज पूरा दिन बस शब्दों के बजाए सेटिंग्स से जूझने में निकल गया। फोंट्स बदलते बदलते लगता था जैसे मूड्स बदल रहा हूँ.. यह तकनीक और तन्हाई भी एक से ही है..! मैंने पूछा उस नखरीली किंडल से, "नोटों सेरिफ चलेगा?" (नोटो सेरिफ फॉण्ट का नाम है।) तो वह कहती है, "नहीं, कुछ नयापन लाओ।" मैने पूछा, "फिर तो मंगल है मेरे पास.." तो वह कहती है, "वो तो दोषयुक्त है।" आखिरकार "नोटों सेंस" पर मैं और किंडल मोहतरमा सहमत हुए।
लेकिन यह सहमति भी कुछ कारगर न निकली। वो नकचढ़ी किंडल ने फिर भी मेरी फाइल को कुछ इसी तरह रिजेक्ट कर दिया, जैसे किसी सरकारी दफ्तर में एकाध कागज़ का पत्ता कम होने पर रिजेक्ट होती है। अबकी बार मैंने बिलकुल ही नए सिरे से नई घोड़ी पर दाव लगान हो, उस तरह नई फाइल बनाकर उसे भेज दी। लेकिन यह आज कुछ अलग ही मूड में मालुम हुई। नई फाइल भी जाते ही रिजेक्ट होकर लौट आयी।
AI का ज्ञान और गंवार लेखक की उलझन
तकनीक के विषय में, मैं गंवार ही हूँ। इधर उधर से ज्ञान इकठ्ठा करने के लिए आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का सहारा लेना चाहा। वह तो जैसे उस नकचढ़ी का यार निकला। जो जो बदलाव मैं पहले ही कर चूका था, वही वही उसने मुझे फिर से करने को दोहराए। एक पागल दूसरा गंवार, फंस गया मैं अबकी बार.. यह जो AI है, उसे दरअसल सारा मामला सविस्तार समझाना पड़ता है। फिर भी वह उन्हीं उपायों को ज्यादा दोहराता है, जो हम कर चुके है, और उसे बताए नहीं है। और लोग कहते थे, यह इंसानों के लिए खतरा है। फ़िलहाल तो यह मूर्ख AI हम जितना बताते है, वह भी ठीक से नहीं निभा पा रहा।
वैसे जैसे पशुओं को ट्रैन करना पड़ता है। वैसे ही इस AI को ट्रैन करना पड़ता है। उसे सारा कुछ समझाओ, तब जाकर वह कुछ मददगार बनता है। न जाने कितने ही बदलाव के पश्चात मैंने फिर से एक बार अपनी वर्ड फाइल फिर से एक बार किंडल को भेजी। उस नकचढ़ी ने फिर से कहा,
“We encountered an error while converting your file.”
वह नकचढ़ी मेडम मुझे नहीं मेरे शब्दों को बार बार रिजेक्ट करती रही। मैंने फाइलें कन्वर्ट की, मैंने हेडिंग्स बदले, हेडिंग्स के तरीके बदले, टेबल ऑफ़ कंटेंट बदला.. लेकिन नहीं..! आज तो वह किंडल मेडम जैसे किसी पुराने गुस्से का बदला लेने पर तुली थी। मैं फाइल सोंपता रहा, स्क्रीन को देखता रहा, उस नीली पट्टी को.. जहाँ लिखा आता, "UPLOADING... " और फिर वह कुछ ही मिनिट्स में नीली पट्टी लाल हो जाती.. जैसे किसी प्रेमिका ने प्रस्ताव ठुकरा दिया हो, और कारन बताओ नोटिस को भी इग्नोर किया हो।
Uploading Error या धैर्य की परीक्षा?
ठीक वैसे ठुकराए हुए आशिक़ जैसी हालत हुई है आज मेरी। जिसे यह भी समझ नहीं आ रहा है, कि इस समस्या को हल किया कैसे जाए? यह तो बुक पब्लिशिंग न होकर गणित का कोई प्रश्न हो गया। जटिल - अति जटिल। फ्री की पब्लिशिंग में इतना तो कोम्प्रोमाईज़ करना पड़ता है। यही कीमत है फ्री की। उनके अनुसार सारे शर्तों का पालन अनिवार्य है। हमें कुछ लाभ दे रहे है यदि, तो उन्हें भी तो रेवड़ी चाहिए।
मशीनें भी हमें सिखाती हैं सब्र का अर्थ
आज तो अब यह दिलायरी लिखने के लिए मैंने अपने वे प्रयास रोक लिए है। लेकिन मेरा मकड़ा-मेहनत कल पुनः शुरू होगा। यह मकड़ा मेहनत ही तो है, बार बार जाल को बुनते हुए गिरती मकड़ी फिर से ऊपर चढ़ती है, और लग जाती है, अपना कार्य पूरा करने को। मुझे लगता है, यह मशीने भी आखिरकार हमें हमारी सीमाएं दिखाने ही आयीं है। या फिर यूँ कहूं कि, यह मशीने हमारी सीमा से ज्यादा हमारा सब्र देखना चाहती है, या सीखाती है।
मशीनी त्रुटियां या तकनीकी त्रुटियां उनका दोष नहीं, हमारी अपनी अधीरता की परीक्षा है, परिणाम है। शायद यही असली UPLOADING है, फाइल नहीं, हमारा अपना धैर्य। कि कब हम थकते है। और काम को अधूरा छोड़ देते है।
शुभरात्रि।
१२/११/२०२५
|| अस्तु ||
प्रिय पाठक !
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