सुंदरता — नज़रिए की बात या वस्तु का गुण?
प्रियम्वदा !
यह पुष्पों में इतनी सुंदरता वाकई होती है, या फिर यह सुंदरता हमारे नज़रिए पर निर्भर करती है? क्योंकि जब तक कोई गुलाब प्रेम प्रस्ताव से ठुकराया नहीं जाता है, वह सुंदरता का शिरोमणि बना रहता है। लेकिन जैसे ही प्रस्ताव रद्द हो जाता है, सबसे पहला यही सुंदर गुलाब या तो कुचला जाता है, या बहा दिया जाता है किसी गंदे से नाले में..! सुंदरता की महत्ता प्रस्ताव के स्वीकार-अस्वीकार पर निर्भर करती है। अजीब है न.. पलभर पहले वही फूल रूपक था, लेकिन अस्वीकार के बाद निस्तेज और निरुपयोगी..!
बागवानी का आनंद और धूप की उलझन
आज सुबह कुँवरुभा को स्कूल छोड़ने के बाद दिलबाग को सजाने पहुंच गया। एक बाल्टी और एक पानी के कैन से दो गमलें तैयार किए। ixora और crown of thorns के प्लांट्स नर्सरी से लाई मिट्टी में खाद मिलाकर, प्लांटेशन कर दिया। अब काफी सारे पौधे हो चुके है मेरे पास। बस उन्हें सजाने के तरीका नहीं आता मुझे। किस तरह उन्हें रखूं, कि उन्हें धूप भी मिलती रहे, सोलार पैनल्स के नीचे जगह भी बनी रहे। गुलाब के उस बेंत भर के पौधे में आज भी एक बड़ा सा गुलाब खिला हुआ था। एक तो पता नहीं वो स्नेक प्लांट क्यों बड़ा नही हो रहा है। लकी बैम्बू भी ठहर गया है। क्रोटन जरूर से बड़ा हो रहा है। अरे हाँ, गेंदे में तो पुरबहार सी आ गयी है। कितनी सारी कलियाँ लगती है।
आज बहुत ज्यादा बढ़ चुके, और अपनी हद पार कर चुके 9oclock की कांटछांट जरूर से कर दी। सदाबहार तो अपनी मौज में भरपूर बड़ा हुए जा रहा है, और भर भर के फुल देता है। मधुमालती के पत्तें गिरने लगे है। फ्लावरिंग रुक सी गयी है। अब तो छत पर काफी ज्यादा गमलें हो चुके है। प्रियम्वदा, यह मैंने नही सोचा था। जब भी नर्सरी जाता हूँ, कुछ न कुछ उठा लाता हूँ। हुकुम भी परेशान से दिखते है, मेरे इस नए नवेले शौक पर। उनका कहना है, कि इतना ही बागवानी का शौक चढा है, तो गांव में खेत खाली ही पड़े है। खेत से याद आया, इस बार तो गुजरात सरकार ने आज तक का सबसे बड़ा किसान सहाय का पैकेज जाहिर किया है। देखते है, क्या प्रोसेस है इसकी।
कल रात को वॉलीबॉल खेल रहे थे। और यह वाला वॉलीबॉल भी पंक्चर हो गया। हवा धीरे धीरे कर सारी निकलती जाती रही। फिर कुछ देर बैडमिंटन खेले। उसमे भी बोर होने लगे, तो मोबाइल लेकर बैठ गए। तो पता चला कि दिल्ली में फिर से कोई ब्लास्ट हुआ है। मैंने काफी सारे न्यूज़ छाने, पता नही चल पाया, कोई टेररिस्ट अटैक था, या कुछ और.. दिल्ली सदैव से दहलती आयी है। सदैव से। उसके भाग्य में है शायद.. सत्ता का केंद्र हमेशा से रक्त से ही सींचा जाता है। वह भूमि कभी तृप्त नहीं होती। महाभारत काल से लेकर आज तक.. वह भूमि समय समय पर नरसंहार मांगती है, शोणित प्यासी हो उठती है। गोरी, तैमूरलंग, नादिरशाह, अब्दाली, और अंग्रेजों ने भी तो तोपें चलवाकर शहर कब्जे लिया था। आज भी, उस भूमि को रक्तपान चाहिए होता है। 1997 से लेकर 2025 तक 26 बड़े बम धमाके हो चुके है। जान की कोई कीमत नहीं है प्रियम्वदा, आज है, कल का क्या पता?
लेखन, ई-बुक्स और वायरल होने का भ्रम
दोपहर को बस यूँही मार्किट चल दिया। पुष्पा जा रहा था, तो मैं भी साथ हो चला। सोचा था एकाध वॉलीबॉल नया खरीद लूंगा। शाम को चाहिए खेलने के लिए। वो क्या है, कि अब एक दिन खेलमुक्त रहकर बैठना भी ठीक नहीं लगता है। पूरी मार्किट में जितने काम थे वे सारे निपटा लिए। लेकिन वॉलीबॉल खरीदना ही भूल गए। वैसे भूल तो क्या गए, मुझे एक बड़ा जरूरी काम आ गया था ऑफिस पर। तो इसी हड़बड़ी में जल्दी ऑफिस लौट आना पड़ा था। ऑफिस लौटकर थोड़ा बहुत काम किया, और उसके बाद अपना काम.. महाराष्ट्र रोडट्रिप को ई बुक बनाने की सोच रहा हूँ.. सोच क्या रहा हूँ, वैसे फॉरमेट तैयार कर ही दिया है। बस कल उसे पब्लिश भी कर दूंगा। अपना तो पब्लिकेशर वही है, अमेज़न किंडल।
कल भी काफी खाली समय मिलेगा। जिसका सदुपयोग मैं इस ई-बुक में ही करने वाला हूँ। यह मेरी चौथी ई बुक हो जाएगी। हालांकि इसका लाभ सिवा मनोरथ के कुछ भी नहीं है। स्वयं को एक संतोष मिलता है, बुक लिखने का बस। आर्थिक लाभ नाममात्र का नहीं। कईं लोगों ने मुझसे पूछा इस ई बुक की पब्लिशिंग के विषय मे। सभी का अर्थ तो यही था कि "कितना मिलता है?" जबकि मेरे प्रत्युत्तर में यही रहता है, कि "मिलेगा एक दिन। उस दिन का आपको इन्तेजार करना है। उस दिन जब आप वाइरल होंगे, उस दिन आपकी ही बात होगी, आपको बाद में पता चलेगा, लेकिन आपकी बातें हर तरफ हो चुकी होगी।"
समाज की भेड़चाल और हमारी सोच
हकीकत यही है, यह समाज, आज भी भेड़चाल में मानता है। उसे अनुसरता है। मेरे दोस्त के भाई के जीजा के दोस्त को लॉटरी लगी थी। तो मैं भी लॉटरी टिकेट्स में अपनी किस्मत आजमाउंगा। इसी तरह हकीकत में किस को क्या इनाम मिला यह नहीं पता है। लेकिन इनाम की खबर सुनी है तो हम उसे अनुसरेंगे। किसी राजकीय पक्ष का वास्तव में विकास का क्या योगदान रहा है, हमें नहीं पता है। लेकिन वे कह रहे है तो मान लेते है। कौन उनकी जांच पड़ताल के झमेले में पड़े भला? अगर जांच पड़ताल करते भी है तो विपक्षी होने का तमगा क्यों ले? उस धर्म मे इतनी छूट मिलती है, और उस धर्म मे इतनी सारी लाभदायी बातें है, तो मैं वह धर्म में अपने ईश्वर क्यों न खोज निकालूं? पूरे के पूरे साम्राज्य कभी जैन, बौद्ध और सनातन धर्म के बीच झूलते रहे थे। क्यों? भेड़चाल.. आसपास के लोग कर रहे है, सब कर रहे है, तो हमें भी वही करना होगा।
नपातुला जीवन — हर चीज़ का एक संतुलन
आजके युग मे बस वह एक पल का सबको इन्तेजार करना होगा, जब सोशल मीडिया पर वायरल होने का समाचार आए। बुक्स का भी कुछ ऐसा ही है। "गुनाहों का देवता" मैंने पढ़ी है। लेकिन सोशल मीडिया पर उसका प्रचार कितना हैवी हो रहा है, वह भी मैं देख पा रहा हूँ.. कुछ लोग तो देखादेखी भी उस पुस्तक की तारीफों के पुल बांध रहे दिखते है। जितने प्रचार सुने मैंने, उनमे से किसी ने भी इस पुस्तक का दूसरा पहलू नहीं दिखाया.. प्रत्येक व्यक्ति या वस्तु में अच्छाई और बुराई दोनों होती है। हाँ वह बात सही भी है कि अच्छाई का बखान होना चाहिए। लेकिन सही मायने में जब बुरे की भी माहिती दी जाए, वह हुई निरी वास्तविकता। लेकिन सोशल मीडिया में बुराई होती है, तो वह भी एक्सट्रीम होती है। अच्छाई गिनवाई जाती है तो वह भी एक्सट्रीम। वो नपातुला वाला माहौल कहीं खो गया है।
फिलहाल रात्रि के साढ़े ग्यारह बजे रहे है। वॉलीबॉल खेलकर लौट आया हूँ। आज शूटिंग बॉल ले आए थे, और यह बॉल साइज में काफी छोटा है, और साथ ही इसे पासिंग के लिए हाथ से पास करते ही बड़ी जोरो से हाथ पर लगता है। नसों को सुन्न कर देता है कुछ देर के लिए। हमने फिर से वही पुराने बॉल में हवा भरकर काम चलाया। आज हमने भी यह खेल नपातुला ही खेला। बहुत ज्यादा देर खेलने से खुद को ही समस्या होती है। एक्सट्रीम तब तक ही अच्छा है, जब तक अपने पक्ष में हो। विपक्ष में होता है, तो वह हमारी सहनशक्तियाँ सबसे पहले हर लेता है।
शुभरात्रि।
११/११/२०२५
|| अस्तु ||
प्रिय पाठक !
अगर आपने भी कभी सुंदरता को अपने नजरिए से परखा है, तो बताइए — आपके लिए ‘सुंदरता’ क्या है? 🌹
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