कुँवरुभा और मोटे आदमी की दौड़
![]() |
प्लांटेशन करते दिलावरसिंह.. |
तो आज तो था रविवार प्रियंवदा ! और भी कड़क धूप वाला रहा। अब जाकर थोड़ा थोड़ा ठंडा हुआ है। इतने दिनों की बादलों चुनौतियों से शायद परेशान हो गए होंगे। तो गर्मी बिखेर दी। खेर, सुबह से ही शुरुआत करते है। रविवार था तो उठने की कोई जल्दी न थी लेकिन सात बजे सवेरा हो चुका था मेरा। कुछ ही देर में ग्राउंड। लेकिन घर से निकलते ही कुँवरुभा रास्ता रोककर खड़े हो गए, बोले मैं भी चलूंगा.. नही, मैं दौडूंगा.. आप मुझे पकड़ना। बालहठ के आगे किसकी चल सकती है भला? वैसे मेरी उम्र में आम आदमी दौड़ तो सकते है, मैंने देखा है लोगो को दौड़ते हुए। लेकिन मैं आम नही हूँ, मैं मोटा हूँ, सो दौड़ नही सकता। सो मीटर भी अगर दौड़ लिया तो तुरंत घुटने पकड़कर झुक जाना पड़ता है। और ग्राउंड है लगभग पाँचसौ मीटर का। कुँवरुभा तो बालक है, हलके-फुलके। उनके पीछे लगभग पच्चतर किलो की बोरी कैसे दौड़ सकती है? लेकिन फिर भी ग्राउंड में गड्ढे करते हुए मोटा आदमी दौड़ गया। कारण है कदम का नाप.. मेरे एक कदम में कुँवरुभा के तीन कदम हो जाए..!
ऑफिस, कार, और हुकुम का हुकुम
बेटा बाप पर ही तो जाता है.. थोड़ी ही देर में उनका मन बदल गया, और बोले घर जाना है। मुझे भी इतना ही चाहिए था। उन्हें घर छोड़कर वापिस मैदान में आया, और लगभग एक घंटे तक कदमताल की। दस बजे ऑफिस। और दो बजे तक वित्त वितरण कार्यक्रम। ढाई बजे घर, और भोजन करके, चाय पी। अजीब है, लेकिन बहुत से रविवार को ऐसा होता है। मेरा भोजन का समय, और माताजी की चाय का समय समांतर हो जाते है। फिर मुझे भी तो चाय का चस्का है। तो खाना खाने के बाद पी लेता हूँ। कल रात को सामने वाला पड़ोसी अपनी कार का टायर खोले बैठा था, उसके भी ड्रम ब्रेक है, सो ब्रेक शु में पानी जाने से फूल गए होंगे। उसकी कार भी मेरी कार की तरह खड़ी रहती है। फर्क उतना है कि उसकी हफ्ते में एक बार चल जाती है, मेरी महीने में। तो कार लेकर मार्किट जा रहा था, हुकुम भी साथ हो लिए।
रास्ते भर उनके कड़वे प्रवचन चलते रहे, जिसे मैं नजरअंदाज तो नही कर सकता लेकिन "हां में हां" जरूर मिलाता रहा। उनका कहना था, मैं बेफिकरा हूँ, मुझे वस्तु की - व्यक्ति की, कदर नही है। किम्मत नही जानता। बात सच भी है। उनके इन कड़वे प्रवचनों का एकमात्र कारण है, कार में नीचे कोटिंग नही करवाई है मैंने। और उनका साथ आने का उद्देश्य भी यही था कि किसी गैरेज वाले के पास जाकर कार में कोटिंग करवा ली जाए। मेरा शहर समुद्र से सटा हुआ है, इस कारण यहां लोहा बड़ी जल्दी जंग पकड़ता है। कार में नीचे का हिस्सा जंग पकड़ना चालू कर चुका है, क्योंकि पांच साल तो हो गए। मेरा उनसे सविनय निवेदन था, कि रविवार को दोपहर बाद सारे ही कार सर्विस वाले बंद रहते है। लेकिन उन्हें कोई काम न था, इस कारण वे रास्ते भर तरह तरह की सलाहें देते रहे।
अक्सर जिस रास्ते पर भर भर के नर्सरी वाले होते है, वहां आज एक भी नही था। याद आया, कुछ दिन पूर्व ही महानगरपालिका ने खुद की महानगरपालिका होने की वहज जताई थी। सो रोड साइड सारे ही ठेले, फ्रूट्स वाले, मटके वाले, और खिलौने वाले.. इन सब को खदेड़ दिया था। तो नर्सरी वालों को भी कहीं भगा दिया होगा। एक जगह थी, जहां यह महानगरपालिका नही पहुंच पाई होगी, वहां मैं पहुंच गया। क्योंकि उस नर्सरी वाले ने रेलवे की जगह दबाई है। वैसे वहां नर्सरी वाला नही, वाली थी। कई सारी कलियों के बीच एक कोमल कली। अरे नही, नही.. आजकल कली कहने पर कुछ छेड़खानी सा मालूम होता है। एक अधेड़ स्त्री थी, और एक लड़की थी। लड़कीं को पौधों की ज्यादा पहचान थी उस अधेड़ स्त्री से। बड़े महंगे महंगे दाम बताए। जिन्हें बाद में उसने वाजिब भी कर दिया।
नर्सरी, पौधे और पहली बार खरीदी मिट्टी
कई सारे, तरह तरह के पौधे थे। कुछ बड़े हो चुके पेड़ भी थे। वह अधेड़ औरत नर्सरी के बीच बने कईं सारे गलियारों से होते हुए, गेंदे तक ले गयी। अभी तो मैं यह सीखने में लगा हूँ, कि पौधे मेरी छत पर खिलेंगे भी या नही, क्योंकि मैं तो अपने आप का ख्याल नही रखता, पौधे कौन बला है? लेकिन कोशिश करनी थी, इस कारण एक गेंदे के साथ एक मधुमालती भी खरीद ली। मधुमालती उस लड़कीं ने सजेस्ट किया था, क्योंकि लड़कीं बोली, इसमें ढेर सारे फूल खिलेंगे..! जीवन मे पहली बार आज मिट्टी भी खरीदी मैंने। मिट्टी भी बिकती है.. दुनिया मे हर चीज बिक सकती है, बस उसकी जरूरत खड़ी करनी पड़ती है। इस बात से एक जौक याद आया, वो भी लिख देता हूँ..
गुजराती का जोक (फ़िशिंग वाला मज़ा)
लंदन में ढेरों गुजराती बसे है। एक स्टोर पर एक गुजराती नौकरी मांगने के लिए गया। दुकानदार ने रख भी लिया। दुकानदार को कुछ देर के लिए कहीं जाना पड़ा, तो वह उस नए लड़के के भरोसे दुकान सौंपकर चला गया। जब वापस लौटा तो उसने देखा, उसकी दुकान से एक टेम्पो भरकर कोई सामान ले जा रहा था। उसने उस गुजराती लड़के से पूछा, बता क्या क्या बेचा है? तो उस लड़के ने बताया, एक आदमी आया था, उसे फिशिंग से लगती बहुत सी चीजें बेची है। दुकानदार आश्चर्य में आ गया, कि इस एरिया में तो फिशिंग से जुड़ी चीजे कभी नही बिकती। तो उस लड़के ने सारी बात बताई, कि एक आदमी आया था, तो उसे एक फिशिंग रॉड बेची। फिश के लिए अच्छे केंचुए दिए। और बेस्ट क्वालिटी वाला फिशिंग वायर भी। अब फिशिंग में तो काफी समय लगता है, इस लिए बैठने के लिए एक चेयर भी तो चाहिए। वो भी बेची। फिशिंग करते हुए धूप से बचने के लिए एक टोपी, और छतरी भी दी। सनस्क्रीन भी। पकड़ी हुई मछलियों के लिए बास्केट दिया। बर्फ भी बेची। और भी ऐसी सारी चीजें..! दुकानदार बड़ा खुश हुआ, बोला ऐसा ग्राहक पहले कभी नही आया। तब उस लड़के ने बताया कि वो आदमी तो सरदर्द की गोली खरीदने आया था। यह तो मैंने उसे समझाया कि फिशिंग का शौख हो तो सरदर्द नही होता। फिर उसने यह सब चीजें खरीदी..!
मतलब, चीज सारी बिकती है, बस उसकी जरूरत खड़ी करनी पड़ती है। मुझे यूट्यूब ने खूब चस्का चढ़ाया, गार्डनिंग करने का। तो मैं भी इसी कारण से नर्सरी चल दिया। जो मिट्टी यूंही सड़क के आसपास मिल सकती है, वह 25 किलो का बोरा मैंने खरीदा। गांव में बड़ा खेत है, कभी उसका ख्याल-खबर नही लिया है मैने। लेकिन यहां, घर की छत पर प्लांटेशन करना है। खेर, शौख कुछ दिनों चढ़ता है.. देखते है यह कितने दिन टिकेगा..! घर आकर पहले सारा सामान उतारा, और बाइक लेकर वापिस मार्किट गया। मेरे वाछटीये वछेरे की चैन तक कीचड़ में सराबोर हो चुकी थी। आज उसकी वाशिंग अनिवार्य थी। बाइक चकाचक हो गयी, फिर मेरी बारी थी। पहुंच गया नाई के पास। बड़ी मुश्किल से पौधों की तरह पाली हुई, और नाज़ों से बड़ी की हुई दाढ़ी नाई ने सेटिंग करते करते न बराबर कर दी। मैं उसे कहता रहा कि मुझे बाबाओं जैसी बढ़ानी है, लेकिन उसने अंधे की अंधता को उजागर न होने दी। नाइ के पास बैठते वक्त चश्मा साइड में उतरकर रख देता हूँ। और उसने सारी ही कुतर दी।
गमले बनाए — पुराने कैन काटकर
खेर, वापिस आकर सोचा कि यूटुबिया ज्ञान जो इतना प्राप्त किया है मैंने, उसे इस्तेमाल भी तो करना पड़ेगा। वरना शिखी हुई विद्या आचरण में न उतरी तो व्यर्थ चली जाएगी। वेस्ट में से बेस्ट करना अब आवश्यता बन गयी। और तो कुछ मिला नही, घर मे पानी भरने के बीस लीटर के दो पुराने फूटे हुए कैन पड़े थे। बापु अपनी बापुगिरी पर आने लगे, चाकू उठा लिया। और उस कैन को बीच से आधा कर दिया। यह एक वाक्य में लिख दिया कि आधा कर दिया, लेकिन पसीने से लथपथ हो चुका था बस कैन काटने में। बापु होने के बावजूद घर के चाकू धारदार नही है मेरे। काफी समय लिया उन प्लास्टिक के कैनो ने कटने में। संघर्ष हो तो सफलता कदम चूमती है, मैंने संघर्ष जरूर किया, लेकिन मैन गेट खुला होने बावजूद कोई सफलता को मैंने अंदर आते नही देखा।
अब दो गमले बन गए, वैसे चार..! उतने में माताजी आ गए, बोले आज यह मजदूरी पर उतरा है तो कोई कसर न छोड़ी जाए। पांच लीटर वाले तेल के दो और कैन उन्होंने मुझे दिए, बोले फतह कर, इन्हें भी काट डाल। मैंने उनके चरणस्पर्श करके पुनः एक द्वंद्व में विजय प्राप्त की। अब छह गमले हो गए। सोचा यह कुछ अच्छे नही लग रहे। इन्हें कलर करना चाहिए। थोड़ा रंगबिरंगी और आकर्षक बनाने चाहिए। लेकिन अब बज चुके थे सात। बचेखुचे हार्डवेर मटेरियल्स वाले, और कलर-पेंट वाले अपनी दुकान बढ़ाकर रविवार मनाने चले गए होंगे। तो फिलहाल उन्हें जैसे थे, वैसे ही मिट्टी और खाद से भरकर, एक मे गेंदा और एक मे मधुमालती बो दिए। दो तो हो गए, मिट्टी अभी भी काफी बची थी। तो उन पानी वाले कैन के उपले हिस्से में पानी निकलने वाली जगह में पन्नी ठूंसकर बंद किया, और फिर मिट्टी भरकर वो नन्ही सी लताएं रोप दी, जिन्हें आजकल 9 o'clock नाम से बुलाई जाती है। जिनमे छोटे छोटे अच्छे फूल खिलते है।
बारमासी यानी कि सदाबहार तो थी ही मेरे घर। उसके आसपास दो नन्हे पौधे और उग आए थे उसीके। तो उसे निकालकर एक तेल वाले पुराने-पवेले गमले में रोपण कर दिया, और बचा एक, उसमे सामने वाले के घर से चुराकर अजवाइन जैसी खुशबू वाला पौधा लगा दिया। सबमे नई मिट्टी, और खाद है, तो उगने - खिलने की आशा ऊंची है। और बारिश का मौसम है, तो पानी भी अच्छा ही मिलेगा। मतलब खिल तो जाएंगे। वैसे उस नर्सरी वाली के यहां गमले भी बहुत सही थे, लेकिन मेरी यह पहली ट्राय है, इस लिए कोई फालतू खर्चा करने मैं बच रहा हूँ। वैसे इन पौधा-रोपण में माताजी ने भारी मदद की। वो पानी वाले कैन के उपले हिस्से समतल नही होते, तो उन्हें जमीन पर नही रखा जा सकता। अतः उन्हें टांगना ही एकमात्र उपाय था। माताजी ने दो प्लास्टिक की डोरी से 'छिंकु' (इस गुजराती शब्द का हिंदी पर्याय नही पता है, छिंकु मतलब वो गांठ वाली डोरी जिस से पहले मटकी टांगा करते थे।) बना दिए। आंगन में दीवार में दो कील लगी हुई है, वहां टांग भी दिए। अगले रविवार कलरकाम कर लेने की सोची है।
बस यही था आज का रविवार, आज की दिलायरी, या आज का दिलबाग..!
शुभरात्रि।
(१३/०७/२०२५)
|| अस्तु ||
This blog was quite interesting. mujhe pdhkr bht mazza aaya 😁or bht sare naye words pdhne mile..aapki mehnat rang laayegi...
ReplyDeletebahut bahut shukriya..!
Delete