दिलायरी : अधूरी बातें और ठंडी हवाएं
प्रियम्वदा !
आज मेरा सारा काम निपट गया। मेरी दिलायरियाँ भी। कितने दिनों से कोशिश कर रहा था। हररोज थोड़ा थोड़ा करके भी, जितना जब समय मिला, मैंने उन लम्हों को अपने शब्दों में पिरो लिया है। हाँ वैसे अभी भी मन मे तो बहुत कुछ लिखने की ख्वाहिशें है, लेकिन हाल-फिलहाल मैंने काट-छांटकर ब्लॉग पोस्ट में तो बांध ही दिया है। कल रात को एक बजे सोया था। दिलायरियाँ पूरी करने के चक्कर मे। तो सवेरे उठा भी काफी देर से, और ऑफिस भी आज तो दस बजे गया। जगन्नाथ के मंदिर भी नहीं गया था। सीधे दुकान से ऑफिस की ओर।
ऑफिस पर काफी दिनों बाद आज थोथों से फिर से मुलाकात हुई है। सरदार का कहना है, कि इसे दीवाली तक अपडेट कर लेना चाहिए। बाद में बहुत ज्यादा कलमें हो जाती है, तो बड़ी समस्याएं होती है। तो डेस्क टेबल पर तो खोले थोथे, लेकिन कंप्यूटर पर दरअसल दिलायरी पूरी की जा रही थी। कोई अगर देखता तो उसे लगता, कि आज बापु बहुत बिजी है। लेकिन यह अच्छा हुआ, इस चक्कर मे मेरी दिलायरी पूरी हो गयी। हाँ, इस बार प्रवास वर्णन काफी रूखा सूखा मालूम होता है। क्योंकि हिंदी में लिखा है। पिछली बार उज्जैन ओमकारेश्वर वाली रोडट्रिप मैंने गुजराती में लिखी थी। वैसे भी मातृभाषा में रूपक देना बड़ा आसान लगता है।
दोपहर को खाना खाकर उठा, और ऑफिस सर बाहर निकला तब मौसम बड़ी तेजी के साथ बदल चुका था। एकदम तूफानी हवाएं बाह रही थी। बिजलियाँ मानो धरती से भेंट करने के लिए आसमान को चीरती हुई नीचे तक उतरती, और फिर अदृश्य हो जाती। उसके इस धरती तक न पहुंच पाने के दर्द से मानो कराह रही हो, और क्रोध में आकर चिंघाड़ती थी। आकाश में स्तरबद्ध काले बादलों की भीड़ जमा हो चुकी थी। लेकिन यह तूफान कहीं पहुंचने की जल्दी में था। न तो एकदम से बारिश हुई, न ही ज्यादा देर तक हवाएं चली। हवाएं ठंडी होकर बह रही थी। जैसे हिमालय के कपाटों से निकली हो, उन उत्तुंग शिखरों से, जहां कालजयी अग्नि भी अपनी लपटों में शीतलता अनुभवती होगी।
बारिश जैसा मौसम बन जाने के कारण मैं मार्किट नही जा पाया। काम तो यही था, कि मुझे ac की पेमेंट करनी थी, ताकि जल्दी से डिलीवरी हो जाए। घर से फोन आ गया था, कि वह इलेक्ट्रीशियन काम करने आया है। तो आज मैंने उसे फोन पर ही समझा दिया, कि वायर को कैसे कहाँ ले जाना है। वह भी समझ गया था। पहले उसे लगा होगा कि शायद जैसे तैसे काम कर दूंगा तो चल जाएगा। आज एक बार ही कहने पर दूसरा वायर ठीक से लगा गया। दोपहर बाद काम के साथ साथ मैंने अपनी दिलायरी पूरी की। और पब्लिश कर दी। लेकिन गलती से पब्लिश के बजाए शिड्यूल हो गयी। अब वापिस कल ऑफिस पर जाकर उसे उसी दिन में पब्लिश करनी पड़ेगी जिस तारीख की वह है। अब एक दिन में दो दिलायरियाँ पब्लिश करूँगा, तब जाकर यह दैनिक वाला मामला फिर से सेटअप हो पाएगा।
तूफान, ठंडी हवाएं और मन का मौसम
फिलहाल वॉलीबॉल खेलकर घर लौटा हूँ, और बारह बजने में बस ग्यारह मिनिट कम है। खिड़की से बाहर ठंडी हवाएं चल रही है। लेकिन खेलने के कारण भीतर से उष्मापूर्ण शरीर पर यह ठंडी हवाएं बहुत शांति देती है। चन्द्रमा का प्रकाश भी आज बहुत है, कुछ ही दिनों में पूर्णिमा आ रही है। आज वॉलीबॉल खेलने में बहुत ज्यादा गलतियां हुई है। एक तो मैं ठहरा आलसी जीव, खड़े खड़े बॉल आए, तब तो मैं उठा लू, लेकिन यदि भागकर अचानक से बॉल आ गयी, तो फिर तो वह बॉल ग्राउंड से ही बाहर चली जाती थी। और सामने वाली टीम को यूँही कितने सारे पॉइंट्स आज मैंने बांटे है। मैं पत्ता, हम दोनों ही विपरीत टीम में होते है, और दोनों ही एक दूसरे की टीम को पॉइंट्स देते है।
समय और अधूरी बातें
कईं बार ऐसा होता है, प्रियम्वदा, हम करते कुछ और है, होता कुछ और है, लेकिन वह दिखता भी कुछ और ही है..! उदाहरण दे नहीं सकता। छोड़ो बात ही बदल देता हूँ.. कईं बार कुछ बातें बाकी रह जाती है। वह कभी पूरी नही हो पाती है। क्योंकि हम कुछ बातों को 'फिर कभी' पर टाल देते है। वह 'फिर कभी' बाद में कभी नही आता। और बात को भुला दिया जाता है। न जाने ऐसी कितनी ही बातें होगी, जिन्हें असमय, अकाल मृत्यु को भेंट चढ़ना पड़ा होगा। क्योंकि उस बात को कहने वाले, या सुनने वाले के पास उस समय - समय नहीं था।
प्रियम्वदा और मौन का संवाद
कभी-कभी सोचता हूँ, प्रियम्वदा — क्या सच में जीवन हमें जितना देता है, उतना ही हम उसमें से महसूस भी कर पाते हैं? या फिर हम बस हर दिन के कामों में, जिम्मेदारियों में, और अधूरेपन में उलझे रह जाते हैं? जीवन का अर्थ शायद यही है — थककर भी मुस्कुरा पाना, और अधूरेपन में भी एक सौंदर्य ढूंढ लेना। जैसे यह दिलायरी, जो कभी पूरी नहीं होती, फिर भी हर दिन लिखे गए एक शब्द में, एक सांस में, एक छोटे से “आज” में अपनी पूर्ति ढूंढ लेती है। कभी लगता है, यह सब लिखना मेरे भीतर की बातचीत है — जो मैं किसी से नहीं, खुद से करता हूँ। आपसे बात करते हुए भी, प्रियम्वदा, मैं अपने ही मन से बात कर रहा होता हूँ।
क्योंकि कहीं ना कहीं, हम सबके भीतर एक “प्रियम्वदा” होती है — जो हमें सुनती है, समझती है, और फिर भी जवाब नहीं देती। बस मौन रहती है — और उसी मौन में हम अपने सारे शब्द रख देते हैं। रात और गहराती जा रही है। घड़ी अब बारह से आगे बढ़ चुकी है, और मैं खिड़की से बाहर झांकते हुए देख रहा हूँ — एक तारा, जो शायद मेरी तरह जाग रहा है। शायद वह भी किसी अधूरी कहानी का साक्षी है।
दिलायरी का अर्थ
थोड़ी देर में नींद आएगी, सुबह फिर वही दिनचर्या शुरू होगी — लेकिन इस बार मैं कोशिश करूँगा कि दिन के भीतर कुछ पल ऐसे चुराऊँ, जो सिर्फ मेरे हों… सिर्फ दिलायरी के हों। क्योंकि जीवन के सबसे सुंदर पल वही होते हैं, जो किसी काम या जिम्मेदारी से नहीं, बल्कि अपने आप से मिलने के लिए जिए जाते हैं। और शायद, यही दिलायरी का असली अर्थ है — हर दिन अपने भीतर के “मैं” को फिर से पहचानना। शुभरात्रि, प्रियम्वदा। अब सच में नींद बुला रही है। 🌙
शुभरात्रि
०३/११/२०२५
|| अस्तु ||
प्रिय पाठक !
अगर आपने कभी किसी रात अपने भीतर की “प्रियम्वदा” से बात की हो —
तो कमेंट में बताइए, क्या आपकी भी कुछ अधूरी बातें बाकी हैं? 💌
• तुलसी विवाह और बाज़ार का दिन – दिलायरी (2 नवम्बर 2025)
• बेकार दिन, वॉलीबॉल और ज़िम्मेदारी – दिलायरी (1 नवम्बर 2025)
• थकान, सुकून और चुनाव – दिलायरी (31 अक्टूबर 2025)
• ज़िम्मेदारी और समय का मूल्य – दिलायरी (30 अक्टूबर 2025)
• अधूरी यात्राएँ, यादें और ज़िम्मेदारियाँ – दिलायरी (29 अक्टूबर 2025)
#दिलायरी #Dilayari #DailyDiary #LifeThoughts #SelfTalk #EmotionalWriting #HindiBlog #BloggersOfIndia #ThoughtfulNights #Primumvada #Dilawarsinh

