"खरचालु दिन, सर्दियों की आहट और बापा सीताराम की मढ़ी || दिलायरी : 04/11/2025"

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दिनभर की दौड़भाग और दफ्तर की उलझनें

    प्रियम्वदा !

    भयंकर खरचालु दिन था आज। एक साथ दो एयर कंडीशनर ले आया। कितने समय से लाऊं लाऊं चल रहा था। आज दोपहर को गया, और ले आया। फिटिंग भी हो गयी। लेकिन हालात देखो तुम.. अभी अभी वॉलीबॉल खेलकर लौटा हूँ, और शरीर एकदम गर्म हुआ पड़ा है। ऐसे मैं अगर ऐसी ऑन करूँगा, तो बीमार ही हो जाऊंगा। वैसे भी, ऐसी चलाने वाले दिन तो अब दूर है। अभी तो सर्दियां आने वाली है। हाड़ कंपकपाने वाली सर्दियां। हिमाच्छादित गिरिश्रृंगों से, पुरवाई चलेगी, और कोहरे अपना एकछत्र साम्राज्य घोषित करेंगे। आलसासुर कहर बरपेगा। लोग काम से कतराएंगे। और भरपूर कोशिश करेंगे, बस पड़े रहने की। और किसी का तो पता नहीं, लेकिन मैं तो पड़े रहने में भरपूर मानता हूँ। दुनिया का असली मजा बस पड़े रहने में है।


Minimalist illustration of a tired writer at his wooden desk under warm lamp light, writing in his Hindi diary “दिलायरी”, surrounded by bills and a cup of tea — moonlight and winter fog visible outside, evoking calm reflection after a long, expensive day.

    आज सवेरे भी ऑफिस पहुंचने में काफी देर हो गयी थी। आज काफी काम भी था। दोपहर तक तो थोथों में लगा रहा था। लेकिन समय मिलते ही प्रवास वर्णन वाली दिलायरी स्नेही से शेयर कर दी। आज कईं दिनों बाद स्नेही जागृत हुआ, जैसे कुम्भकर्ण जागा हो। लेकिन नसीब.. कि मेरी भेजी हुई लिंक काम नहीं कर रही थी। कारण शायद यही था, कि मैंने पब्लिशड पोस्ट को प्रीवियस डेट में रीपब्लिश कर दी। शायद इस कारण से लिंक ब्रेक हो गयी होगी। और पोस्ट का पेज ठीक से काम नहीं कर पाया। मैंने कंटेंट नई पोस्ट में पेस्ट किया, फिर से पोस्ट पब्लिश की। और स्नेही को भेजा, तब तक वह कुंभकर्ण फिर से सो गया था। और मैं फिर से अपने थोथों मे उलझने के लिए प्रस्थान कर गया।


दो एसी, एक इलेक्ट्रिशियन और बढ़ते खर्चे

    दोपहर को लंच करने के बाद मैं चल पड़ा मार्किट। इलेक्ट्रॉनिक्स शॉप पर पहुंचा, दो ऐसी का भुगतान किया, और ऑफिस आ गया। ऑफिस लौटते हुए भारी ट्रैफिक जाम के चलते चार बज गए थे। कल देव दीवाली और गुरु नानक जयंती होने के कारण सरकारी छुट्टी है, इस कारण से हमारे यहां भी बिलिंग वगेरह बंद रहनी है। और मेरे लिए थोथे पूरे करने का सुअवसर। एक ही आदमी हूँ, लेकिन ऑफिस के कार्यक्षेत्र में हर दिशाएं मेरी है। क्रिकेट की भाषा मे कहूँ तो मैं ही बॉलर हूँ, बैट्समैन भी। विकेट-कीपिंग भी मैं ही कर रहा होता हूँ, और फील्डिंग भी मेरी। ऑल राउंडर भी इतना कुछ नहीं करते है। बारह बजने में बस अठारह मिनिट बाकी है, और नींद भी आने लगी है।


    प्रियम्वदा, कुछ लोग ठगी में माहिर होते है। मेरा वह चमगादड़ की शक्ल का इलेक्ट्रिशियन आज सारे काम पूरे कर गया, और बिल मुझे व्हाट्सएप्प कर दिया। दो वायर लगाने थे, दो mcb स्विचस, और एक थ्रीपिन प्लग। कुल मिलाकर एक अच्छा इलेक्ट्रिशियन आधे दिन में यह काम कर सकता था। लेकिन मेरे भाग फूटे थे, जो मुझे यह क्रैक पीस मिला। पाँचसौ रुपये उसने अपनी मजदूरी बताई थी। हररोज एक एक घण्टे आकर, उसने तीन दिन की मजदूरी सत्रहसौ जोड़ दी। चार हजार रुपये में वायर, mcb स्विचस, और एक प्लग लाया था। सामान महंगा हो, समझ सकता हूँ। लेकिन यह मजदूरी का हिसाब समझ नही आया। आधे दिन के काम को तुम तीन दिन तक खींचो, फिर भी पन्द्रहसौ मजदूरी बनती है, लेकिन अगला सत्रहसौ मांग रहा था। दो सौ रुपए उसने एक ट्यूबलाइट फिट करने के मांग लिए। देने पड़े, क्या करता.. गलती मेरी थी, पहले ही दिन उसे रोक लेना चाहिए था मुझे। 


    एक तरफ ऑफिस में भरपूर काम था, तभी घर पर ऐसी पहुंच गए। और उससे पहले पहुंच गया, ऐसी फ़ीट करने वाला। वह भी फिटिंग के नाम पर कुछ नाजायज़ पैसे ले गया। इसी कारणवश मैंने शुरुआत में कहा, काफी खरचालु दिन था। करीब करीब एक लाख रुपये एक दिन में उड़ा दिए। अभी तो मुझे वह अलुमिनियम डोर करवाने है। वैसे प्रियम्वदा, इन सब भागादौड़ी में मेरा दिलबाग मैंने कितने ही दिनों से नहीं देखा है। सवेरे लेट उठने के कारण ऑफिस जाने की जल्दी होती है, शाम को खाना खाकर वॉलीबॉल खेलना होता है। रात को देर तक खेलते रहने के कारण सवेरे उठ ही नही पाता हूँ। और अकाल में अधिक मास यह दिलायरियाँ.. इन्हें पूरी करने के चक्कर मे कितने दिनों से मैं कितना कुछ मिस कर रहा हूँ। सोसियल मीडिया, बुक पढ़ना, कहीं एकांत में बैठना, और भी बहुत कुछ।


गरबी चौक की कहानी और मोहल्ले की मढ़ी

    इतनी व्यस्तता की मुझे आदत और चाहत, दोनों ही नहीं है। मैं तो अपना मनमर्जी का मालिक हुआ करता था। हालांकि अब भी मनमर्जी का ही मालिक हूँ। तभी तो वॉलीबॉल खेलता हूँ, बजाएं दिलायरी लिख लेने के। इस बार तो शायद मेरा सर्दियों में वह अंगीठी सेंकते बैठना भी नहीं हो पाएगा। क्योंकि मैं वहीं तो बैठा करता था, जहां आज हम वॉलीबॉल खेलते है। अरे हाँ ! हम लोग कितने मतलबी है, यह बात बताता हूँ। मैं जहां रहता हूँ, वह पहले एक पैक्ड सोसायटी हुआ करती थी। चारो तरफ से बाउंड्री वॉल से घिरी हुई। जरूरत के अनुसार लोगों ने बाउंड्री हटाकर पास के गांव के साथ रास्ता जोड़ लिया। और धीरे धीरे यह एक सोसायटी के बदले एरिया बन गया। इस सोसायटी में तीन कॉमन प्लॉट थे। एक ले लिया जगन्नाथ ने - मतलब ओड़िया लोगों ने भगवान जगन्नाथ का मंदिर बना लिया, और मंदिर का परिसर  हो गया यह कॉमन प्लॉट। दूसरा वाला प्लॉट राजस्थानी जाटों ने ले लिया। और उनके लोक देवता तेजाजी को बिठा दिया। 


बापा सीताराम की मढ़ी का विचार

    बचा है अब आखरी हमारा गरबी चौक। वर्षों से यूँ तो हम लोग गरबा करते है यहां हर साल। लेकिन फिर नवरात्रि के नौ दिन छोड़कर बाकी पूरा साल यह प्लाट यूँही खाली पड़ा रहता है। तो कुछ लोगों की नीयत खराब होने लगी, और प्लॉट के आसपास के मकान वाले कॉमन प्लॉट करने की मांग करने लगे। अपने यहां ऐसा कुछ भी नहीं है, कि तुम बाहरी राज्य से हो, तुम्हे तुम्हारी लिमिट में रहना होगा, गुजरातियों से दबकर रहना होगा। हमारा तो खुला हिसाब है, आओ, कमाओ, और बस शांति से रहो। गरबीचौक के आसपास यह राजस्थान, हरयाणा के लोग बसे हुए है। और चाहते है, कि यह चौक में उनकी फोर व्हीलर खड़ी रहे। हम(मैं) चाहते है कि गरबी चौक में और किसी का पैर न पड़े। इस कारण से मैंने एक दिन यूँही ज़हरीले गजे को सलाह दी। "अपने गरबी चौक में बापा सीताराम की मढ़ी बना लेते है। ताकि यह बाहरी लोग फालतू की झंझट उतपन्न न करें।" हमारा यह गजा बेशर्म है। उसने सब बड़ो के सामने प्रस्ताव रख दिया। बड़े राजी है। बोले, हमने अपने समय मे यह संभालकर रखा था, अब तुम्हारे हवाले है। जो मर्जी पड़े वह करो।


ठंड, थकान और दिल की शांति की तलाश

    तो हमने अब तय कर लिया है। बापा सीताराम की मढ़ी बनाने के पीछे मेरा यह विचार था, कि अगर मंदिर बनाने जाए, तो बहुत ज्यादा खर्चा बैठ जाता है। और मढ़ी में फर्क यही है, कि यह एक झोंपड़े जैसा होता है। चार खंबे खड़े करके, उपर पतरे डाल दिए जाए, तो मढ़ी तैयार। बाकी साज-सजावट तो हम अपनी इच्छानुसार जैसे भी चाहे कर सकते है। बापा सीताराम प्रसिद्ध संत थे। और लोगों को उनमे बड़ी आस्था है। वे सदा ही सीताराम शब्द का जाप किया करते थे। हमने आज नाप वगेरह ले लिया है, और बहुत जल्द एस्टीमेट बनवा लेंगे। एस्टीमेट आ जाने के बाद कुछ फण्ड हमने इकट्ठा कर रखा है, और कुछ हम डोनेशन ले लेंगे। तो थोड़े से फण्ड में ही तैयार हो जाएगी। देखते है, बाकी आगे तो बापा की मर्जी।


    शुभरात्रि।

    ०४/११/२०२५

|| अस्तु ||


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