यात्रा का लौटना, लेकिन मन का ठहर जाना
प्रियम्वदा !
कईं बार किसी यात्रा, या प्रवास से शरीर तो लौट आता है, लेकिन मन उन्हीं किसी रास्तों पर ठहरा रह जाता है। उसे हम खिंच भी लाते है, तो बार बार वह वहीँ लौटने लगता है। रास्ते खत्म हो गए हो तब भी, मन की मंजिल नहीं। मन में वह भटकते रहने की ख्वाहिश बाकी रह गयी। किसी दिन मैं अकेला सफर करूँगा.. बिलकुल ही अनिश्चितता के साथ.. जहाँ कुछ भी तय न हो.. न दिन का उगना, न ही उसका अस्त होना.. सब कुछ ही अनिश्चित, लेकिन सब कुछ मेरे नियंत्रण में हो.. मैं सोचता हूँ, मेरी काशी की यात्रा कुछ ऐसी ही होगी..!
दिनचर्या में उलझा एक अधूरा मन
आज सवेरे एक बार याद तो आया था, लेकिन फिर ऑफिस जाते हुए अपने दिलबाग में जाना चूक गया। पता ही नहीं है, अब तक कितनी कलियाँ खिल चुकी होंगी गुलाब की। या कितने ही गुड़हल की कलियाँ अनखिली ही गिर चुकी होगी। सुबह सुबह सर्दियाँ अपना पैर जमाती जरूर है, लेकिन सूर्य की तपिश से बहुत जल्द उसके पैर उखड़ने लगते है। ऑफिस पहुँचने के बाद एक तो बीते कल की दिलायरी लिखी। उसके बाद मेरा एक ही नियम है। हर बार की तरह स्नेही मित्र के साथ लिंक शेयर की, और आश्चर्य की बात है, आज रिप्लाई आ गया।
सलाह की तलाश और आत्मविश्वास की कमी
दोपहर को आज भी नींद की एक झपकी ले ली। एक तो सर्दियों के कारण नींद भी अधिक आती है। ऊपर से वॉलीबॉल की थकान। बिलकुल ही मन नहीं करता सवेरे उठने का। आलसी जिव को तो बहाना चाहिए होता है। दोपहर बाद कोई काम न था..! सोचा तो था, कि उस रोड ट्रिप को एक इ-बुक में तब्दील कर दू.. लेकिन समस्या यह है, कि मुझे एक आश्वासन चाहिए होता है। पता नहीं मैं कब अपने आप पर भरोसा करना सीख पाउँगा। मुझे किसी न किसी की राय चाहिए होती है। पहले मेरे पास एक पता था, मैंने बहुत राय ली है, लेकिन अब वह उसे पते से प्रत्युत्तर बहुत देर से आते है।
मुझे एक पोस्ट उस ट्रिप की प्लानिंग पर भी लिखनी है, पर पता नहीं, कैसे लिख पाउँगा। समझ ही नहीं आता, दिलायरी लिखूं, या उसके लिए समय निकालूँ। अरे, आज याद आया, मेरी एक पोस्ट थी, उस पर बहुत विभिन्न प्रतिक्रियां आयी थी, उसे आज एक साल हो गया। उस पोस्ट में ज्यादातर शब्द शुद्ध हिंदी तथा संस्कृत से लिए थे। लोगो ने ऐसी ऐसी प्रतिक्रियाएं दी थी, कि मुझे भी उस पोस्ट को पढ़कर अजीब सा अनुभव होने लगता था। (यहाँ पढ़ सकतें है।)
अधूरे दोहे, अधूरा प्रेम — और भटकने की ख्वाहिश
मन की ख्वाहिशें पूरी क्यों नहीं होती..? मुझे घूमने.. मतलब घूमने से भी ज्यादा भटकने की इच्छा है। पता नहीं कैसी ख्वाहिश है, लेकिन है तो है.. मैं और मेरा अकेलापन.. और किसी का भी साथ नहीं चाहिए। पहले मुझे यह ख्वाहिश अजीब लगती थी, लेकिन बाद में मैंने देखा, लोग घूमते है, अकेले, अपने आप के साथ, अपनी मर्ज़ी अनुसार। मुझे भटकना है, बरड़ा की टेकरियों पर, जहाँ कभी सोन ने हलामण जेठवा को अधूरे दोहे भेजे थे। अधूरे दोहे, और अधूरा प्रेम.. दोनों ही घातक होते है। मुझे घूमना है, गिर का वह चाचई जहाँ किसी समय राणा और कुंवर ने अपने देह के चूरे करते हुए आखरी आलिंगन लिया था।
वो मंज़िलें जहाँ मन बस जाना चाहता है
मेरी ख्वाहिश है, किसी समंदर की रेत में कोई नाम लिखा हो, जिसे बार बार समंदर की लहरें मिटाती रहे। मेरी ख्वाहिश है, काशी के उन घाटों पर बेघर सा बस जाऊं.. जहाँ सारी ही व्याधियां, सारी ही जिम्मेदारियां मुझ से अपने आप को अलग कर ले। मेरी ख्वाहिश है, हिमालय की गोद में किसी बच्चे सा बनकर बस जाऊं..! किसी दिन कंधे पर बैग हो, और जेब में थोड़ा सा वज़न, दिशाहीन दशा.. फिर मैं हूँ, मेरा अपना पथ है, और अनिर्धारित मंजिल.. जहाँ तक रास्ते जाते है, और जहाँ नहीं जाते हो वे भी..!
खेल, ठहाके और ‘भीम की गदा’
पौने आठ बज रहे है, सर्दी का प्रभाव फिर से महसूस होने लगा है। पूर्णिमा एक दिन बाद भी यह चंद्र पूरा ही मालुम होता है। घर पहुंचकर भोजनादि से निवृत होकर वॉलीबॉल खेलने चला गया। आज काफी ज्यादा संख्या थी। दोनों ही पालों में छह-छह प्लेयर थे। मेजदार मैच। और मैच को रोमांचक करने के लिए लड़कों के कहने पर मैंने और पत्ते ने टीम बना ली। पंद्रह पॉइंट्स के तीन सेट। और दो सेट जीत गए वे विजेता। हारे हुए को सबको ठंडा पिलाना है। जब इनाम लगा हो किसी स्पर्धा में, वह स्पर्धा में सब जी जान लगा देते है। अपनी पूर्ण क्षमताओं के साथ जितने के प्रयास में लग जाते है। बशर्ते मेरी टीम मजबूत थी। और मेरा जीतना तय ही था, तो मुझे कोई फ़िक्र नहीं थी। पत्ते ने हार के बाद ठंडा मंगवा लिया।
खेल में सबसे ज्यादा मजेदार होता है इनाम। इनाम भले ही एक घूँटभर कोल्डड्रिंक ही क्यों न हो.. लेकिन फिर भी हम उसके लिए भरपूर मेहनत करते है। हर कोई चौकन्ना रहता है। और जीतने के लिए जीजान लगाता है। मैंने खुद ने पहली बार अच्छा खेला यह मुझे अनुभव हुआ। मुझे यह वॉलीबॉल का खेल नहीं आता है। मतलब बेसिक पता है, कि बॉल को अपने पाले में नहीं गिरने देना है। लेकिन जब बॉल आती है, तो अपने आप को तैयार रखकर बॉल अपने हाथों से सामने पाले में जानी चाहिए। मैं पता नहीं कहा गलती कर बैठता हूँ, कि मेरे हाथो से गयी हुई बॉल सारा मैदान छोड़कर बहुत दूर चली जाती है। सामने वाली टीम को मैं कितने ही ऐसे पॉइंट्स दे देता हूँ। इस चक्कर में इन लड़को ने मेरे द्वारा मारे गए शॉट को नाम दे दिया गया है, "भीम की गदा"..
चलो फिर, बारह बज रहे है। कल तो कुंवरूभा को छुट्टी है, जल्दी उठने की कोई झंझट नहीं है। फिर भी सोना भी जरुरी है। यह नींद वाला सोना भी, वो वह पीला वाला सोना भी..
शुभरात्रि।
०७/११/२०२५
|| अस्तु ||
प्रिय पाठक !
🌿 और भी पढ़ें:
#Dilayari #ManKiYatra #TravelDiary #EmotionalWriting #BhavYatra #KashiKiPukar #Dilawarsinh #HindiBlog #SoulfulJourney #DiaryWriting

