"सर्दियों की आहट और दिलबाग की शरारत — एक रविवार की दिलायरी : 09/11/2025"

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सर्दियों की वापसी और रात की ठंडक

    प्रियम्वदा,

    मेरी प्रिय सर्दियां लौट आयी है। रात में जरूर से अनुभव होती है। दिन में तो अब भी पसिनेदार गर्मी पड़ती है। लेकिन संध्या के साथ साथ यह प्रिय लौट आती है। बीती रात गड़बड़ हो गयी थी। हुआ क्या कि अब मुझे उम्र का रखना चाहिए ध्यान.. साथ मे शारीरिक बांधे का भी। मोटे को वॉलीबॉल खेलने में एक लिमिट रखनी चाहिए। कल रात साढ़े नौ बजे शुरू किया था, तो साढ़े बारह बजे तक.. ठंड के बावजूद पसीने बह निकले। थोड़ी देर के लिए नेटी रहा था। वॉलीबॉल के खेल में सबसे भयंकर गधा मजदूरी नेटी करता है। उसे सतत बॉल को देखते रहना होता है। बॉल कहीं से भी उसके पास आ सकती है। अपने खेमे से भी। तो सात आठ बार गोल गोल घूमना पड़ा, और इस चक्कर मे चक्कर आने जैसा अनुभव होने लगा। थोड़ी घबराहट भी। मैं भी कहाँ इन उगते लड़कों के साथ रेस में लग जाता हूँ..! 


"Rooftop garden in winter evening with fallen flower pots and a cup of tea — symbol of peaceful solitude."

दिलबाग की सुबह और कुत्तों की चालाकी

    घर आकर बिस्तर में पड़ा, लेकिन काफी देर तक नींद नहीं आयी। आखिरकार डेढ़ बजे करीब थोड़ा शरीर शांत हुआ। आज तो रविवार ही था, ऑफिस जल्दी पहुंचने की कोई भागदौड़ न थी। आराम से आठ बजे उठा, वह भी घर मे शोर मचा हुआ था, कि छत पर दिलबाग उजड़ गया है। कान में यह स्वर पड़ते ही मैं छत की ओर चल दिया। प्रियम्वदा, बड़ा अजीब वाकिया हुआ है। छत पर पहुंचकर देखा तो दिलबाग तो ठीकठाक है, ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन छत पूरी मल से भरी पड़ी थी। हमारे यहां के कुत्ते बड़े जोरदार है। चालू है..! क्या करते है, मेरे घर के बाहर मेरी कार खड़ी रहती है। कुत्ते कार की बोनेट से होते हुए कार की छत पर जाते है, वहां से लपक कर घर के बाहर वाली सीढ़ियों से होते हुए छत पर। पता नही, यह कुत्ते ठंड के कारण ऐसा करते है, या फिर कुछ और..! 


    एक दो गमले गिरे हुए थे। वो स्नेक प्लांट बेचारा गया शायद। उसे दूसरे गमलें में डाल तो दिया है, लेकिन वह अपनी जड़ से अलग हो चुका है। यूट्यूब पर देखा तो पता चला, कि वापिस उग जाएगा। देखते है। बाकी छत पर तो कुत्तों ने जगह जगह पर मलत्याग किया है। कईं बार उन्हें अपनी छत पर पहले भी मैं घेर चुका हूँ। लेकिन हाथ मे नहीं आते। पड़ोसी की छत पर चले जाते है, और उनकी सीढ़ियों से बाहर रोड पर निकल जाते है। पहले मैं अपनी कार दूर पार्क करता था, तब भी यह कुत्ते पड़ोसी की सीढ़ियों से मेरी छत पर आ जाते। डंडा लेकर उन्हें दौड़ा देता हूँ, लेकिन उन चार पैरों वाले के पीछे मैं दो पैरों से कितना ही भाग लू? 


नए पौधे, नई मिट्टी और पुराना खेल

    सवेरे ऑफिस पहुंचा, पहला काम तो हमेशा की तरह दिलायरी पब्लिश करना ही था। उसके बाद ऑफिस का काम निपटाते हुए भी ढाई बज गए। घर पहुंचा, घर से कार उठायी, और फैमिली को घुमाने चल दिया। वहां से लौटते हुए बहुत लेट हो गया। घर पहुंचते पहुंचते छह बज गए। उत्साही लड़कों का ग्रुप में मेसेज आया हुआ पड़ा था, उन लोगो ने खेलना चालू कर दिया था। अरे हाँ, घर पहुंचने से पहले फिर से आज नर्सरी चला गया था। मिट्टी चाहिए थी। दो और गमलें तैयार करने थे। तो साथ ही साथ दो प्लांट्स भी ले आया। फिलहाल उनके नाम भूल चुका हूँ, लेकिन है तो दोनों ही फूलों वाले पौधे..! दोनों में कुछ अलग तरह के फूल आते है। उनमे एक है Crown of Thorns, और दूसरा पौधा है ixora.. यह भी पिंक ही लाया हूँ। माताजी का कहना था, लाल लेना है। लेकिन लाल गुलाब, लाल गुड़हल तो थे ही। एक पिला गेंदा है, तो यह गुलाबी फूलों वाले पौधे भी तो चाहिए। ब्लू रंग के लिए अपराजिता भी लगा दी है। लेकिन मेरी नियत देखो तुम.. पौधों को घर उतारकर चल दिया वॉलीबॉल खेलने।


    उत्साही लड़के खेल चुके थे, और शायद थक भी। तो हमने खेल के लिए ग्राउंड में लाइटिंग सही करने का काम उठा लिया। दूसरों को तो ज्यादा समस्या नहीं थी, लेकिन पहले जहां यह led फोकस था, वहां से सीधी लाइट मेरी आँखों मे जाती थी, और बॉल कब नजदीक आती समझ नहीं आता था। इन लाइट्स के कारण आंखे कुछ चौंधिया जाती थी। फोकस वगेरह नए तरीके से सेट किए। और फिर घर की ओर चल दिए, क्योंकि साढ़े आठ बजे चुके थे। घृष्णेश्वर से कुछ रिश्तेदारों के लिए 'श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग' का फ्रिज मैग्नेट लाया था। उन्हें पहुंचाना था। तो उनके घर दे आया। एक एक पत्ता और विषैले गजे के लिए भी लाया था। उन्हें वॉलीबॉल ग्राउंड में दे दिया। हाँ, अभी भी ग्यारह बजे तक जरूर खेले। विषैले गजे ने पहली बार थोड़ा जोश में खेला, और अपना हाथ सूजवा लिया।


वॉलीबॉल की रात, दर्द और सुकून

    वॉलीबॉल खेल रहे है, और हाथों पर निशान न छपा तो क्या खाक खेले? मेरे हाथों में भी दो जगह पर खून जम गया है। होता हैं, नॉर्मल है। और यह दर्द - दर्द की तरह अनुभव भी नहीं होता है। हाँ, उस घाव वाली जगह पर कुछ छू जाए, तो दर्द - दर्द करता है। पौने बारह बज रहे है, और नींद बहुत आ रही है। कल ऑफिस का काम मुझे पता है, सुना है, शाम तक एक ही काम मे मुझे लगा रहना है। तो यह समस्या कल होने वाली है, कि कब यह दिलायरी पूरी करूँगा, और इसे पोस्ट करूँगा..! फिलहाल सो जाता हूँ।


ठंडी हवा का अंतिम स्पर्श

    नींद अब पलकों पर उतरने लगी है, बाहर की हवा ठंडी और नम है। कहीं दूर कोई कुत्ता फिर से भौंक उठा है — शायद वही, जिसने आज दिलबाग उजाड़ा था। लेकिन इस ठंडी हवा में एक सुकून भी है, जैसे सर्दियों ने कह दिया हो — “आ गया हूँ, फिर वही धीमे दिन, वही रज़ाई की रातें।” शरीर थका है, पर मन शांत है। लगता है, इस मौसम में हर थकान भी एक कविता बन जाती है — बस लिखने की देर होती है।


    शुभरात्रि।

    ०९/११/२०२५

|| अस्तु ||


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