“Planned Roadtrip vs Real Journey : जो Google Maps ने नहीं दिखाया!”

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“Roadtrip Plan aur Reality — सफर और सीख..”


“Roadtrip planning vs reality illustration”

    हर रोडट्रिप दो बार होती है। एक बार नक़्शे पर, दूसरी बार रस्ते पर। और सच्ची कहानी हमेशा दूसरी होती है। यह कहानी फिर हमेशा के लिए मन में बस जाती है। इस कहानी का अनुभव, इस कहानी की सीख, सदा के लिए होती है। और हमें और नए अनुभवों को पाने के लिए प्रेरित करती है। कहानियां हमेशा से प्रेरणा देती है। कुछ करने को, और कुछ न करने को..!

    ठीक है, फिर मैं अपनी कहानी बताता हूँ। मैं भारत के पश्चिम छोर पर स्थित कच्छ में बसा हूँ। यहाँ से पाकिस्तान भी नजदीक है, और कच्छ की खाड़ी भी। औद्योगिक शहर है, और काम की कमी नहीं है। पेशे से नौकरी करता हूँ, और दिनभर एक छह बाय छह की ऑफिस में इस कम्प्यूटर पर अंगुलियां पटकता रहता हूँ। काम की धमाल और टेंशन में दिन कब खत्म हो जाता है कुछ पता नहीं चलता है। रात को खाना खाकर कुछ देर सोशल मीडिया पर चक्कर काटने निकलता हूँ, तो कोई पहाड़ों में घूम रहा होता है, कोई नदियों के घाटो पर, कोई समंदर के किनारे, तो कोई महास्थापत्यों में। 

    यह देखकर अहसास होता है, कि क्या जीवनभर इसी तरह कंप्यूटर के आगे बैठे रहना ही नसीब में लिखा है? इसी चक्कर में, और इसी तरह लोगों को घूमता देख मैंने भी घूमने जाने का प्लान बना लिया। प्लान काफी लंबा था। मथुरा, आगरा, अयोध्या, प्रयागराज, वाराणसी, और देवघर। सारा रोडमैप और प्लानिंग तैयार थी। ऑफिस पर मैं इकलौता आदमी हूँ, जो काफी सारे कामों को अकेले करता हूँ, इस कारण मुझे हमेशा से छुट्टियां लेने में बड़ी समस्या रही है। लेकिन इस बार दिवाली की छुट्टियां मिलाकर कुल दस दिनों की छुट्टियां निश्चित हो गयी थी। 

    कुल तीन लोग जाने वाले थे। लेकिन एक आदमी इस रूट पर होता खर्चा देख पानी में बैठ गया। और हमारा वह प्लान ठन्डे बक्शे में चला गया। उसके बाद यह महाराष्ट्र रोडट्रिप वाले प्लान पर हम शिफ्ट हुए। इस रोडट्रिप में खर्चा भी कम था, और दिन भी कम लगने थे। यहाँ हम तीनों जन निश्चय कर चुके थे। दिवाली की ही रात को जाना तय हुआ।

“Planning Phase – जब सब perfect लग रहा था”

    तो प्लान कुछ इस तरह था, कि हमारे यहाँ दिवाली बीस तारीख की थी। दिवाली रात बारह बजे के बाद तारीख हो जानी थी इक्कीस। और हम लोग तीन बजे यहाँ से निकलने वाले थे। 

  • त्र्यंबकेश्वर : दिनांक 21/10/2025, 3:00 बजे कच्छ से निकलना, और त्र्यंबकेश्वर पहुंचना था शाम 08:00 बजे। लगभग आठसौ किलोमीटर का रास्ता, और 15 घंटे की ड्राइविंग। पहली रात त्र्यंबकेश्वर में ही रुकनी थी। समय मिला, तो यहाँ ब्रह्मगिरि पर्वतारोहण करना था। 
    • 800 किलोमीटर, और 20 की एवरेज से 100 रूपये पेट्रोल की कीमत मानते है, तो 1 किलोमीटर तय करने में पांच रूपये लगने थे। 4,000 रूपये का पेट्रोल होगा। 
    • 1,000 रूपये का होटल रूम सोचा था। (गुजरात में सातसौ रूपये में एक अच्छा होटल रूम मिल जाता है।)
    • 1,000 रूपये खाना-खर्च माना था, तीन जन के हिसाब से।
    • 1,500 रूपये अन्य खर्च माना था, जैसे की फास्टैग, या फिर कोई रस्ते में होने वाला खर्च।
      • लगभग 7,500 रूपये पहले दिन का खर्च सोचा था।  
  • भीमाशंकर : दिनांक 22/10/2025, सुबह 10:00 बजे त्र्यंबकेश्वर से निकलना, और दोपहर के 03:00 बजे करीब भीमाशंकर पहुँच जाना। नाशिक संगमनेर वाले हाईवे से यह सफर लगभग 236 किलोमीटर का है। पूरा नेशनल हाईवे है, लेकिन मंचर से भीमाशंकर का 60 किलोमीटर का रास्ता संकरा, और घाटों से भरा हुआ है। लगभग 5 घंटे की ड्राइविंग थी। भीमाशंकर में घने जंगल है। यहाँ प्रकृति की गोद में रुकना था। वनों की चहलपहल को महसूस करना था। सूखे साग के पत्तों के सरसराती हवाओं को सुनना चाहिए। 
    • 250 किलोमीटर के सफर में 1,250 का पेट्रोल लग जाता। 
    • वही 1,000 रूपये रूम किराया। 
    • 1,000 खाना-खर्च। 
    • और 1,500 अन्य खर्च।
      • 4,750 दूसरे दिन यानी की भीमाशंकर का खर्च माना था। 
  • घृष्णेश्वर : दिनांक 23/10/2025, सुबह 10:00 बजे भीमाशंकर से घृष्णेश्वर का सफर तय करना था। उसी पुणे नाशिक से वापिस होते हुए नंदुर से समृद्धि महामार्ग पर चढ़ना था, जो हमें घृष्णेश्वर से नजदीक पहुंचा रहा था। दोपहर 03:00 बजे हम पांच घंटे का सफर तय करके पहुँचने थे। 
    • 320 किलोमीटर के इस सफर में 1,600 रूपये का अंदाजित पेट्रोल खर्च होना था। 
    • यहाँ हमें दो रात रुकना था, इस लिए 2,000 रूपये होटल किराया सोचा था। 
    • 1,500 रूपये वही अन्य खर्च के। 
    • और 2,000 रूपये भोजनादि का खर्च। 
      • इस तरह लगभग 7,100 रूपये घृष्णेश्वर में खर्च होना था। 
  • घृष्णेश्वर / एल्लोरा की गुफाएं : दिनांक : 24/10/2025, यह पूरा दिन सिर्फ एल्लोरा की गुफाएं तथा आराम, और खरीदारी तथा मौज-मजा के लिए आवंटित था। एल्लोरा की गुफाएं काफी विस्तृत परिसर में फैली हुई है। अच्छी तरह देखनी हो तो एक पूरा दिन लग ही जाए। और यहाँ से घर वापसी का रास्ता लगभग 1,000 किलोमीटर था, जिसे ड्राइव करने के लिए पर्याप्त आराम कर लेना चाहिए। 
  • कच्छ : दिनांक 25/10/2025, सवेरे 06:00 निकलना था, और वाया सापुतारा होकर कच्छ वापिस लौटना था। और 18 से 19 घंटे का थका देने वाला सफर था। 
    • 950 किलोमीटर के इस सफर में 5,000 का पेट्रोल खर्च होना था। 
    • 1,000 रूपये खाना खर्च तथा,
    • 1,500 रूपये अन्य खर्च सोचा था। 
      • 7,500 रूपये घर वापसी का खर्च होना था। 

    इस तरह पांच रात्रि तथा छह दिन का हमारा यह प्रवास निर्धारित हुआ था। और लगभग 27,000 का कुल खर्च बैठता था। हम तीन प्रवासी थे। तो लगभग एक व्यक्ति के हिस्से 9,000 रूपये खर्च होना था। लेकिन यह कागज़ी प्लान वास्तविकता से बहुत बार भिन्न होते है। या फिर यूँ कहूं, कि इन कागज़ी प्लान का अमल करना बहुत ज्यादा कठिन होता है।

“On the Road – जब सफ़र ने सब बदल दिया”

    हमें रात तीन बजे निकलना था। उसके बदले इस रोडट्रिप के उत्साह और अनिंद्रा के कारण हम लोग रात के बारह बजे ही निकल गए। कच्छ से अहमदाबाद, फिर वड़ोदरा तक एक्सप्रेसवे। वड़ोदरा से हमें वह दिल्ली-मुंबई वाला एक्सप्रेसवे मिल गया था। नया एक्सप्रेसवे है, तो खाली भी था। सीधी रोड और कोई ब्रेक लगाने का कारण न होने से एक अच्छी स्पीड मेन्टेन होती है। कार की एवरेज भी अच्छी मिलती है।

    हमें त्र्यंबकेश्वर पहुँचने में 16 या 17 घंटे लग गए। हमने रास्ता चुना था अम्बोली घाट वाला। वापी के बाद मुंबई वाले रोड पर चारोटी से लेफ्ट साइड रोड जाता है जव्हार होते हुए सीधा त्र्यम्बक। बहुत ज्यादा घाटी, गोलाई वाला यह संकरा सा रोड है। मुझे ऐसे रोड पर अनुभव कम था, अतः मैं काफी धीरे चला हूँ। और अंबोली घाट का आखरी हेयरपिन बेंड पर तो बहुत ज्यादा हाल्फ-क्लच में गाडी चलने के कारण कुछ जलने की बू भी आयी। और हमने आधे घंटे का ब्रेक ले लिया। 

    त्र्यंबकेश्वर में दिवाली अवसर पर बहुत ज्यादा भीड़ मिली हमें। शाम के पांच या छह बज रहे थे। होटल रूम भी 1,000 में मात्र बेसिक सर्विस वाला मिला था। अच्छे रूम 2,500 रूपये के थे। बजट यहीं से हिलना शुरू हो चूका था। सोचा तो यह था, कि दोपहर को तीन बजे ही त्र्यम्बक पहुँच जाएंगे। तो ब्रह्मगिरि पर्वत पर से सनसेट देखेंगे। लेकिन श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए काफी भीड़ थी। लगभग चार घंटे हमने केवल दर्शन की लाइन में खड़े रहने में व्यतीत किए।

    दूसरे दिन ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर तो नहीं चढ़े, लेकिन गंगाद्वार तक जरूर गये। गंगाद्वार गोदावरी नदी का उद्गम स्थान है। यह चढ़ाई भी मेरे लिए मुश्किल रही थी। लगभग दसेक बजे तक हम लोग भीमाशंकर के लिए निकल चुके थे। त्र्यंबक से नाशिक होते हुए, सिन्नर और संगमनेर और मंचर तक पुणे वाला नेशनल हाईवे मिलता है। मंचर गाँव से भीमाशंकर के लिए हाईवे छोड़कर घाटी की गोलाइयों वाले पहाड़ी रस्ते पर चलना पड़ता है। यह रास्ता बहुत खराब है। यहाँ बहुत सारे ऐसे पैचेज है, जहाँ अच्छी भली कार भी गड्ढों में जमीन को छू जाती थी। 

    प्लान तो हमारा यह था कि भीमाशंकर में रात रुकेंगे। लेकिन उस दिन मराठियों के लिए गुड़ी पाड़वा था, और हमारे लिए नया साल। यहाँ तो बहुत ज्यादा भीड़ थी। मंदिर से दो किलोमीटर पूर्व ही कार पार्क करवा दी। वहां से मंदिर तक लोकल eeco कार चलती है। तीस रूपये पर पर्सन लेते है। मंदिर से थोड़े दूर उतार देते है। हम जब यहाँ पहुंचे तब अँधेरा घिरने लगा था। 

    हमें यहाँ मंदिर से नजदीक कोई होटल रूम मिला ही नहीं। बाद में लोगों ने बताया कि भीमाशंकर जाने वाले रस्ते में जो होटल्स मिलते है, वहीँ रूम लेना होता है। मैंने गूगल मैप में देखा था, ज्योतिर्लिंग के नजदीक कुछ होटल्स दिखा रहे थे ऑनलाइन। लेकिन ग्राउंड रिअलिटी कुछ और ही है। यहाँ गुड़ी पड़वा के कारण बहुत ज्यादा भीड़ थी, और हमें पांच घंटे सिर्फ दर्शन करने में लग गए थे। 

    अब यहीं प्लान बदल गया। तय हुआ कि रात भर ड्राइविंग करके घृष्णेश्वर ही पहुँच जाते है। और हमने नाईट ड्राइविंग की। लेकिन सुबह ब्रह्मगिरि चढ़े थे, दिनभर कार चलाकर भीमाशंकर पहुंचना, और फिर पांच घंटे लाइन में खड़ा रहना भी थका तो देता है। नींद आने लगी ड्राइविंग करते हुए। तो खतरे की सीमारेखा देख, मैंने एक होटल की पार्किंग लोट में ही, कार में ही नींद लेना तय किया। 

    एकाध घंटे में आँखे खुली, फिर चल पड़े, और आगे चलकर मैं अकेला ड्राइविंग कर रहा था, बाकी लोग सो रहे थे, तो फिर से एक बार एक चाय के ठेले के आगे कार रोककर फिर डेढ़ घंटे की झपकी ले ली। यहाँ एक गलती भी हो गयी, कार बंद कर दी, लेकिन हेडलाइट के चालू रह जाने से कार की बैटरी डेड हो गयी थी। धक्का मारने से कार चालू हो गयी थी.. कुछ देर बाद हम समृद्धि महामार्ग, या नागपुर-मुंबई एक्सप्रेसवे पर थे। 

    यह एक्सप्रेसवे भी बहुत बढ़िया है। यहाँ भी कार को एक कंटिन्यू स्पीड मिलती है, कोई बंप्स नहीं है, कोई टर्निंग नहीं है। एक स्पीड मेन्टेन होने के कारण एवरेज अच्छी मिलती है। सवेरे साढ़े आठ बजे हम घृष्णेश्वर में थे। यहाँ होटल्स बहुत महंगे है। हमारे लिए तो थे ही। 2,500 रूम किराया था। हमारे बजट से काफी ज्यादा बाहर। लेकिन नेगोटिएशन कर सकते है। मोलभाव करने के बाद एक ठीक-ठाक कमरा हमें 1,500 में मिल गया था। होटल का नाम था, 'शिवम रेसीडेंसी' ज्योतिर्लिंग से बस पांचसौ मीटर की दूरी पर।

    हमें प्लान के अनुसार तो यहाँ दो नाइट्स रुकना था, लेकिन सवेरे नौ बजे ही पहुँच गए थे। और एक ही दिन में हमनें एलोरा की गुफाएं और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन भी कर लिए, तो एक और दिन यहाँ रूककर करते क्या? हम दूसरे दिन ही घर की ओर निकल पड़े। अपनी ट्रिप प्लान से अब हम एक दिन आगे थे। एक दिन पहले ही घर पहुँच रहे थे। घरवापसी में हमने वाया सापुतारा वाला रास्ता लिया। वेरूळ माने घृष्णेश्वर से सापुतारा तक का रास्ता गलत पसंद कर लिया था। वैजापुर से पिंपलगाव होते हुए वणी से सापुतारा वाला रास्ता। 

    इस रस्ते पर सापुतारा से बीस-तीस किलोमीटर पहले पड़ती एक पुलिस चेकपोस्ट के साथ एक मिसअंडरस्टेण्डींग के चलते कुछ दंड भुगतना पड़ा। यहाँ हमारा अंडर बजट ओवर हो गया। हम इस ट्रिप पर यह सोचकर निकले थे, कि जितना हो सके उतना कम खर्च हमें करना है। हमने सस्ते से सस्ता रूम खोजा, हमने पिने के पानी पर न बराबर खर्च किया। हमने पार्किंग लॉट्स के खर्चे बचाए। लेकिन यह पुलिस वाले अनुभव ने दिल में एक टीस लाकर रख दी थी। 

    सापुतारा में मुझे पैराग्लाइडिंग करनी थी। लेकिन उस बुरे अनुभव के कारण सारा मूड खराब हो चूका था। हमनें एक घंटा सापुतारा हिलटॉप पर कुदरती दृश्यों को निहारा, और फिर कच्छ की ओर लौट चले। सापुतारा से वघई तक सारा घने जंगलों वाला रास्ता है। काफी मजेदार है। चौड़ी रोड, गोलाइयों से भरी हुई। चार बजे हम सापुतारा से निकल चुके थे। और कच्छ में अपने घर तक पहुँचने में हमें सुबह के आठ बज गए थे। यह ड्राइविंग बहुत थका देने वाली रही थी। खासकर अहमदाबाद से कच्छ तक। वघई से सूरत तक तो ख़राब रास्ता, और लोकल ट्रैफिक बहुत ज्यादा था। भरुच से अमदावाद (अहमदाबाद) एक्सप्रेस वे मिलता है। और अहमदाबाद से कच्छ तक फोर लेन हाईवे।

“Expectation vs Reality – एक छोटा-सा तुलना”


  • 🛣️ रास्ता
      • Expectation: Smooth highway, café stops, background music
      • Reality: पहाड़ी मोड़, मिट्टी के रास्ते, और बीच-बीच में network gone!
  • 🍳 खाना
      • Expectation: Breakfast at a fancy café
      • Reality: धाबे की चाय और हर जगह मिसळ पाव...
  • 🏠 Stay
      • Expectation: NightStay with best view
      • Reality: बस रात निकल जाए...
  • 🌦️ मौसम
      • Expectation: Sunny perfect day
      • Reality: हल्की बारिश, और उससे भी ज़्यादा खूबसूरत यादें

“रास्तों ने क्या सिखाया”

    रस्ते सदैव से कितना कुछ सीखाते आए है। वे खुद चुपचाप रहकर भी कितने सारे शोर-शराबे को सहते रहते है। वे उन सारी प्रकृतियों को सहते आए है। कभी उनके किनारे किसी घास की पराग से खिले जंगली फूल को सराहा है उन्होंने। उन्होंने उस हरेक थके हुए यात्री को अपनी मंजिल तक पहुँचाने का जिम्मा उठा रखा है। मुझे, मेरी नजरों में रास्ते, या वे पथ जो कहीं भी ले जाते है, वे ही ज्यादा महत्वपूर्ण रहे है। 

    मुझे हमेशा से मंजिल से ज्यादा रोमांचक यह रास्ते लगते है। रास्तो के दोनों तरफ कितना कुछ होता है, कहीं पर कोई खेत में काम करता हुआ, अपनी फसल को लहलहाती देख मुस्काता किसान। कहीं पर किसी रास्ते का अकेलापन दूर करने के लिए कोई नदी उसके साथ साथ बहती है। तो कहीं पर तो समंदर स्वयं अपनी लहरों के साथ रस्ते का महेमान बनता है। 

    कभी कोई रस्ते, डामर या सीमेंट की चकाचौंध से दूर, बस धूल से सने हुए, पत्थरों से भरपूर, फिर भी यात्री के लिए सहज। यह रस्ते हमेशा से मौन साधनारत रहते है। हाँ ! दिशा दिखाते है। कभी कभी भूलभुलैया में उलझाते भी है, लेकिन वह तो हमें तय करना होता है, कि हमें कौनसा रास्ता लेना है।

त्र्यंबकेश्वर, भीमाशंकर, घृष्णेश्वर - त्रि ज्योतिर्लिंग का कुल खर्च.. 

    हमने यह यात्रा कच्छ से शुरू की थी। मैंने इस यात्रा में हुए तमाम खर्च को चार हिस्सों में बाँट दिया है।
  1. FUEL & TOLL : 13,482 (10,892 रूपये पेट्रोल तथा पुरे 2,500 TOLL खर्च हुआ।)
  2. FOOD & DRINK : 9,025 (DRINK का खर्च हमारा ज्यादा है। गुजराती है न हम.. ;)
  3. STAY : 2,500 (हमारा भीमाशंकर में नाईट-स्टे का खर्च बच गया था।)
  4. OTHER : 3,890 (इसमें से 3,500 रूपये उस दंड के है, वह नहीं लगता तो 390 रूपये ही अन्य खर्च है।)
    तो कुल मिलाकर 28,897 रूपये खर्च हुए थे। हम तीन लोग थे, तो प्रत्येक के हिस्से में 9,632 रूपये खर्च हुआ। अगर वह 3,500 का दंड न भुगतना पड़ता, तो कुल खर्च 25,397 होता। 

सफ़र जो सिखा गया

रास्ते हमेशा वैसे नहीं निकलते,
जैसे हम नक्शे पर खींचते हैं।
कुछ मोड़ हमें भटकाते नहीं,
बल्कि हमें हमारी असली मंज़िल दिखाते हैं।

इस सफ़र ने सिखाया —
कि हर journey perfect plan से नहीं,
बल्कि उन अपूर्ण पलों से सुंदर बनती है
जो अचानक घटते हैं।

हर trip हमें थोड़ा बदलती है —
चाहे वो लंबी हो या छोटी,
पहाड़ी हो या मन की।


🛣️ और आप बताइए —
क्या कभी आपका भी कोई सफ़र ऐसा रहा है,
जहाँ plans पीछे रह गए हों और यादें आगे निकल आई हों?
💬 नीचे comment में अपनी कहानी ज़रूर लिखिए —
शायद आपकी यात्रा, किसी और की अगली प्रेरणा बन जाए।

और हाँ...

महाराष्ट्र रोड ट्रिप पढ़ने के लिए निचे सारे पार्ट्स दिए गए है। अच्छा लगे तो कमेंट जरूर से कीजिए।

1️⃣ Roadtrip वाली दिवाली – त्र्यंबकेश्वर की सुबह
2️⃣ त्र्यंबकेश्वर से भीमाशंकर – नए साल की राहें
3️⃣ भीमाशंकर से घृष्णेश्वर – एलोरा की गूंज
4️⃣ वापसी की कहानी – सपुतारा के रास्ते
5️⃣ दिल्ली–मुंबई एक्सप्रेसवे – रात के सफ़र की यादें


🌄 इन पाँचों पड़ावों में बसी है एक पूरी यात्रा —
रास्तों की थकान, मुस्कानों की गर्माहट,
और उस मन की खोज, जो हर मंज़िल के बाद भी सफ़र में रहता है।

 

|| अस्तु ||

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