भीमाशंकर के वन से लौटकर — मन वहीं अटका है
प्रियम्वदा !
तीर्थक्षेत्रों में घूम तो आया हूँ मैं, लेकिन शरीर यहां आ चुका है। मन.. वो तो अब भी भीमाशंकर के श्री वनक्षेत्र मे भटक रहा है। थकान के कारण झुकाम घेर चुका है। शरीर अब भी टूट रहा है। मन तो बार बार कहता है, आराम करने को। लेकिन शरीर अगर आराम चाह लेगा, तो आलसी जीव फिर पड़ा ही रहेगा.. आज मौसम भी कुछ अजीब ही रहा है। सवेरे से धूप के साथ साथ ठंडी हवाएं चल रही थी।
ऑफिस, बारिश और अधूरे कामों की कहानी
सौराष्ट्रभर में बारिश हुई है। शायद वर्षा भी हमारे साथ साथ महाराष्ट्र से यहां तक आयी है। प्रियम्वदा, मौसम इतना सुहाना है, कि मन करता है, बस कहीं पड़े-पसरे ही रहें। कुछ काम-धाम करे ही नही। लेकिन कोई भी काम किए बिना कैसे चल सकता है, यह संसार ही न रुक जाएगा?
बहुत सारे काम बाकी है, और मैं नही उतावलेपन से निपटाने में लगा हुआ हूँ। गलतियों पर गलतियां किए जा रहा हूँ। इक्कीस तारीख से दिलायरियाँ लिखनी बाकी है। यह ट्रेवल अनुभवों के साथ साथ उसके बजट पर भी एक अलग पोस्ट लिखनी है। बहुत कुछ काम है, लेकिन समय? वो नही मिल पा रहा है। इतने दिनों बाद ऑफिस पर फिर से काम का अंबार उतर चुका है। सवेरे ऑफिस पहुंचने से लेकर शाम तक ढेरों काम रहते है। बारी बारी सब निपटाते हुए शाम हो जाती है। घर के भी कुछ काम होते है वे अलग..!
रिश्ते, भरोसे और बहानों का रोज़मर्रा
सवेरे ऑफिस जाने से पूर्व ही माताजी ने कहा, सोमवार है, मंदिर ले चल। मंदिर के नाम पर कैसे उन्हें मना करूं? ले गया, नजदीक ही है मंदिर, लेकिन समय फिर भी लग जाता है। उन्हें मंदिर दर्शन करवाने के बाद मैं जगन्नाथ जी के वहां चल पड़ा। दर्शन करके बाहर आया, हररोज वाली दुकान बंद थी। तो पुराने ओड़िया के पास चल दिया। उसकी दुकान पर एक बार चक्कर खाकर बेहोश हो गया था, तब से उसकी दुकान पर नही जाता मैं। मन उचट गया है वहां जाने से। आज जाना पड़ा। एक सिगरेट पीकर ऑफिस चल दिया। पौने दस बजे पहुंचा था। ऑफिस पर कईं सारे काम थे। बैंक की lc से लेकर बिलिंग तक। कब दोपहर हो गयी, कुछ पता ही नही चला।
इस काम के अलावा लोगों को पेमेंट रिमाइंडर भी तो देने पड़ते है। एक आदमी है, जिसे मैं जितनी ही बार फोन करूँ, उसके पास बहाना तैयार ही होता है। आज बारिश हो गयी थी उसके वहां, इस कारण से पेमेंट नही हो पाएगी। कल छुट्टी थी, परसो मार्किट खुली नही दीवाली की छुट्टियों के चलते। उससे पहले उसे जिससे पेमेंट लेनी थी, उसने दी नही.. हर बार यूनिक और अलग बहाना। या फिर कहेगा कि आज शाम तक आपको पेमेंट मिल जाएगी। शाम को फोन करो तो कल का नाम..! इतने आत्मविश्वास से वह बहाना मारता है, कि अपने पास यकीन करने के अलावा कोई विकल्प भी नही छोड़ता। और इतनी मीठी बोली बोलता है, कि क्या बताऊँ..! मैंने एक बार उधार दिया था उसे, बड़ी मुश्किल से वापिस पाया मैने।
आज भी उसने कड़क बहाना मारा था, और कल के नाम पर वायदा कर दिया। और साथ ही यह भी जोड़ दिया कि परसो तो आपको 110% पेमेंट मिल ही जाएगी। लिखकर रख लो। हालांकि मुझे भी अब उसपर गले तक भरोसा है। खेर, दोपहर को मार्किट चल पड़ा। एयर कंडीशनर खरीदना है मुझे। मुझे तो चलता है, बगैर ऐ.सी. के मैं पहले नही रह सकता था। अब रह सकता हूँ।
जब शब्द भी थक जाते हैं… पर मन नहीं
यह बीती गर्मियों में मैंने एक दिन भी ऑफिस का ऐसी नही चलाया था। तो शरीर अपने आप गर्मियों के अनुसार ढल गया। लेकिन हुकुम नही रह पाते है। उनका कहना है, कि अभी सर्दियों में खरीद कर रख लेनी चाहिए। अब तो GST भी कम कर दिया है सरकार ने। तो दोपहर को लंच करके चल पड़ा मार्किट। मैंने कभी इस बारे में जानकारी ली ही नही है।
मार्किट में अलग अलग कंपनियों के कईं सारे ऐसी अवेलेबल है। स्टार रेटिंग के साथ। सबसे पहले टाटा वे क्रोमा में गया था। वहां कोई फीचर समझाने आया ही नहीं। तो मैंने अपने आप वहां लगे प्राइस टैग से फंक्शन्स जानने-समझने की कोशिश की। लेकिन कुछ भी पल्ले न पड़ने पर निकल गया। उसके बाद दो-तीन दुकानों पर कोटेशन्स लिए। एक जगह सही दाम लगे। मुझे एक साथ दो लेने है। कुछ उस नाम पर भी डिस्काउंट मिल जाएगा।
एक दुकान पर गया, तो उसने तो मुझे कईं तरह की बाते बताई, जो मुझे ऐसी के साथ और अलग से लगवानी पड़ेगी। मुझे याद आया, अपने घर पर तो ऐसी के लिए इलेक्ट्रिसिटी पॉइंट ही नही है। पहले तो वो लगवाना पड़ेगा।
इतने में तीन बजे गए, और मैं ऑफिस लौट आया। ऑफिस लौटते ही कामों में लग गया। अपने पास पेमेंट नही आई तो क्या हुआ, अपने को जिन्हें पेमेंट्स करनी है, वो तो करनी ही पड़ेगी। तो कुल नौ-दस पेमेंट्स करने के बाद कुछ काम बाकी नही रहता था। तो मैं लग गया अपनी दिलायरियाँ पूरी करने में। उतने में एक पार्टी (व्यापारी) आयी। वह मुम्बई आता जाता रहता है। उससे बातों में लग गया। उसे मैंने अपना वो महाराष्ट्र के RTO वाला अनुभव कहा, उसने तुरंत कहा, मुझे फोन कर देते। वैसे ठीक ही किया। ऐसी स्थितियों में पैसे देकर पीछा छुड़वा लेना ज्यादा बेहतर है। वो चाहे तो खामखा कईं धाराएं लगाकर बिठा सकता है। उसके पास पावर है। बात तो सही है, जिनके पास अधिकार होते है, उनसे पंगा नही लिया करते।
शाम तक एकाध दिन की भी दिलायरी मैं पूरी नही कर पाया। कारण यही था, उस पार्टी के साथ बातों में इतना मशगूल था मैं, कि पता ही न चला कब साढ़े सात बज गए। बाहर बारिश शुरू थी, यह भी पता नही था मुझे। बारिश तो नही कहानी चाहिए। हमारी बोली में तो इसे 'मावठु' कहते है। बिनमौसम बारिश को मावठा कहा जाता है।
साढ़े सात बजे ही ऑफिस से इसी कारणवश निकल गया, कि कहीं बारिश बढ़ गयी तो, भीगने के साथ साथ ठंड भी चढ़ेगी। और यह बारिश तो और बीमार कर देती है। त्र्यम्बकेश्वर में हम भीगे ही थे। घृष्णेश्वर में भीगने से इस लिए बच गए, क्योंकि हम एक दुकान में खरीदारी कर रहे थे। भीमाशंकर में हम कार में थे।
प्रियम्वदा — तुम्हारे आकर्षण की बारिश
देखा, मैंने कहा था न, मेरा मन अब भी वहीं भटक रहा है। मुझे उन्ही ख्यालों में डूबा रहना बड़ा आकर्षक लगता है। प्रियम्वदा, तुम्हारे आकर्षण के बाद यही एक आकर्षण है मुझे.. घूमते रहने का। दिशाहीन, कोई भी पूर्व आयोजन के बिना, जहां मन चाहे.. मन तो तुम्हारे ही पास पहुंचने को करता है.. पर एक तो यह बेड़ियां मुझे बांधे रखती है, और एक तुम्हारा यह बेरुखा बर्ताव.. मैंने क्यों इस आकर्षण को अपने से अलग नहीं किया कभी.. तुमने आंधी की तरह मेरे शब्दों के उपवन में पड़े अकाल में अशांति कर दी.. अकाल के त्राहित को तुमने और उजाड़ दिया.. या फिर तुमने मुझे यह दिलायरियाँ दे दी? मैं नही जानता.. इतना जरूर जानता हूँ, तुम प्रियम्वदा हो..!
शुभरात्रि।
२७/१०/२०२५
|| अस्तु ||
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