दिलायरी : मावठु, मन और भूल
प्रियम्वदा !
कईं बार हम और कुछ करने में इतने ज्यादा मशगूल हो जाते है, कि हमें जो करना था, या जिसके प्रति हम कटिबद्ध थे, वह मुद्दा नज़रअंदाज़ हो जाता है। आज कुछ ऐसा ही हुआ। मेरी एक गलती के कारण, या मैंने जो नजरअंदाज किया उस के कारण बहुत बड़ी समस्या हो जाती। नौकरी पेशे से जुड़ी बात है, इस कारण यहां सविस्तृत नहीं लिख सकता।
मावठु की बारिश और किसानों की चिंता
आज सवेरे से मौसम अलग ही चल रहा है। कल शाम को भी अच्छी बारिश हुई थी। वैसे इसे हमारी भाषा मे बारिश नही, मावठु कहते है। किसानों के लिए नुकसानदेह बारिश है यह। सौराष्ट्रभर से खबरें आने लगी है। कईं किसानों की पक चुकी मूंगफलियां बर्बाद हो गयी। रातभर लगभग बूंदाबांदी चलती रही थी। सवेरे से ठंडे पवन भी चल रहे थे। दोपहर तक तो काफी सारे काम थे।
सोशल मीडिया और ‘दुनिया को बताना’
पता ही नहीं चला कि कब दोपहर हो गयी। हाँ बीच बीच मे कुछ खाली पेच मिलते रहे, जिनका सदुपयोग मैंने अपनी सोसियल मीडिया वाली ज़िन्दगी में किया। सोसियल मीडिया के बिना तो कैसे यह संसार चल सकता है? और मैं तो अभी ताज़ा ताज़ा एक लंबी ट्रिप करके आया हूँ। फ्लेक्स तो करना पड़ेगा न, वरना दुनिया को पता कैसे चलेगा, कि मैं घूमकर आया हूँ।
दोपहर को लंच करने के बाद मैं बैठ गया था, अपनी दिलायरियाँ लेकर। अभी तक बस दो दिन की ही लिख पाया हूँ। काफी ज्यादा बाकी है। और उनके अलावा यह दैनिक भी अलग.. ट्रेवल वाली लिखते लिखते शाम हो जाती है, और फिर आज के दिन की बाकी रह जाती है। आज भी शाम के साढ़े सात बजे तक मे मैंने एक और दिन की दिलायरी लिखकर पब्लिश कर देनी चाही, लेकिन फिर उसे शिड्यूल कर दी। अब कल वह अपने आप पब्लिश हो जाएगी।
दिलायरियाँ लिखने की कशमकश
फिर याद आया, आज के दिन की कब लिखूंगा? सोचा घर जाकर लिख लूंगा। लेकिन घर पर तो कुँवरुभा फोन देखते ही दौड़ लगा देते है। उनके सामने इस कारण से भी फोन यूज़ नही करता हूँ, कि वे फोन मांगे नहीं। बच्चे हमेशा बड़ो का अनुकरण करते है। हम ही यदि उनके सामने फोन लेकर बैठे रहें, तो वे भी यही सीखेंगे।
बारिश, ठंडी हवा और बिस्तर की गर्माहट
दोपहर बाद से बारिश के कारण ठंड में और बढ़ोतरी हुई है। सर्दियों वाली कातिल ठंडी हवाएं चलने लगी है। सोचा था, आज वॉलीबॉल खेलेंगे, लेकिन बारिश है, कि मानती नही। रूकने में समझती ही नहीं है। न तेज बारिश हो रही है, न ही धीरी.. बस मानो टपकसिंचाई योजना चालू की हो इंद्र देव ने। इस बहाने वैसे मेरे सोलर पैनल्स अच्छे से धुल गए। वैसे भी आजकल सुबह सुबह उठने का मन नहीं करता है। बिस्तर में पसरे रहने में जो मजा है, वह शायद इंद्र के स्वर्ग में भी न हो..! स्वर्ग देखा किसने है? बस कल्पनाएं सुनी है हमने भी, जैसे जन्नत की होती है, बहत्तर फ़ीट की हूरें.. अपने यहां हूरें नही होती, अपने यहां अप्सराएं होती है।
शाम की खिड़की और भीतर का ठहराव
थोड़ा रुकना भी ज़रूरी है
कभी-कभी ज़िन्दगी हमें झकझोर कर कहती है — “रुक जा ज़रा, तू दौड़ तो रहा है, पर दिशा देखी?” आज शायद वही दिन था, जब मुझे रुकना चाहिए था — और मैंने रुककर देखा भी। अब बस यही सोच रहा हूँ — कि कितनी बातें हैं जो दिल में आती हैं, पर दिलायरी में आने से पहले ही कहीं खो जाती हैं। हर रात जब मैं लिखने बैठता हूँ, तो लगता है जैसे कलम भी मुझसे कहती हो — "तू सब कुछ लिख देना, पर खुद को मत छिपाना।"
खुद को लिखना सबसे कठिन होता है
पर खुद को लिखना, सबसे मुश्किल काम है, प्रियम्वदा! क्योंकि जहाँ “मैं” होता हूँ, वहाँ शब्द कमज़ोर पड़ जाते हैं। और शायद यही तो ज़िन्दगी की खूबसूरती है, प्रियम्वदा — जहाँ हर गलती हमें थोड़ी समझ देती है, हर ठंडी हवा एक नया सबक लेकर आती है, और हर शाम... एक नई सुबह का वादा करती है। फिर भी... कल सुबह जब सूरज लौटेगा, और सौराष्ट्र की मिट्टी अपनी भीगी खुशबू फैलाएगी, तो मैं फिर बैठूंगा — एक नई दिलायरी के साथ, एक नए दिन के साथ।
शुभरात्रि।
२८/१०/२०२५
|| अस्तु ||
प्रिय पाठक !
अगर कभी बारिश के साथ आपने भी अपने भीतर की गलती देखी हो — तो इस दिलायरी को ज़रूर पढ़ें, और साझा करें। 🌧️

